Book Title: Anekant 1948 08
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Jugalkishor Mukhtar

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Page 42
________________ ३२६ ] अनेकान्त . . [ वर्ष दोनों तथा बाबू मङ्गलचन्दजी सा० भाबकको मिलना उनके वसीयतनामामें लिखा है पाठशाला, अनाथालय. चाहिये। अब पुनः ६ सितम्बरको जब धारासभा और बहनोंको सहायता करना । ट्रस्टकी मूल सम्पत्ति खुलेगी तब यह बिल उपस्थित किये जानेकी संभावना १ लाख २५ हजारसे भी अधिक है। इसके ब्याजसे है, इस प्रसङ्गपर जैनोंको विरोध करना चाहिये । यदि ही यदि काम किया जाय तो बिहार-प्रान्तमें जैनधर्म बिल जैनोंपर लागू हुआ तो जैनोंकी जो धार्मिक और संस्कृतिकी ज्योति जलाई जासकती है। स्व. स्वतन्त्रता है वह सदाके लिये नष्ट हो जायगी, कारण जौहरीजीका तो वही ध्यान था, पर आज तक कुछ भी कि बोर्डको जो अधिकार दिये गये हैं वे जैनोंके लिये काम नहीं हुआ। न जाने कुछेक ट्रस्टी लोग अपने घातक हैं। उदाहरणके लिये बोर्ड में जैन तो एक परिवारवालोंके साथं क्या-क्या कर रहे हैं। आज जैन सदस्य रहेगा और सरकारी ११ रहेंगे, काम बहुमतसे जनता इसे सहायता कर उन्नत बनाना चाहती है तो होंगे और जिस मन्दिरमें अधिक सम्पत्ति है उसका वे सहायता इसलिये नहीं लेते कि उनको हिसाब पेश परिवर्तन भी संभव है। ऐसी परिस्थिति में जैनोंको बड़ा करना पड़ेगा। सामाजिक सम्पत्तिका मनमाना . उप मा पड़ेगा. अतः क्यों नहीं सारे भेदभाव योग करना मुर्खताकी पराकाष्ठा है। जनताको हिसाब भुलाकर एक स्वरसे सरकारका विरोध करते। मुझे न बताना, ऐसे ट्रस्टोंकी व्यवस्थासे जैन युवक स्वाभाअपने धार्मिक और सामाजिक ट्रस्टोंके ट्रस्टियोंसे भी विक रूपसे क्षुब्ध रहते हैं । मैंने तो केवल दो उदाहरण दो बातें कहनी हैं। मान लीजिये कि जैनी उपरि कथित. ही दिये हैं । न जाने कितने जैनट्रस्टोंकी भी वैसी ही. कानूनसे पृथक होगये तो इसका अर्थ यह न होना दुरवस्था होगी। समयका तकाजा है कि अधिकारीगण चाहिये कि आप अपनी दुर्व्यवस्थाकी परम्पराके प्रवाह- अब अपनेको वह सम्पत्तिका स्वामी न समझे, बल्कि को आगे बढ़ाते जायें। यह बड़ी भूल होगी, तीर्थस्थानोंके जनताका सेवक समझे, वरना आगामी युगका वायुरुपयोंका उपयोग यदि अन्य प्राचीन जैन मन्दिरोंके मण्डल उनके सर्वथा प्रतिकूल होगा। जीर्णोद्धारमें व्यय हो तो क्या बुरा है ? बिहारकी ही प्रान्तमें हम सूचित करते हैं कि बिलका विरोध मैं बात करूँगा, उदाहरण रूपमें मैंने यहाँकी कलापूर्ण किया जाय उसकी प्रति सेठ मङ्गलचन्द शिवचन्द प्रतिमाएँ देखीं। मेरा विचार था कि यदि पावापुरी चौक सिटीके पतेपर सूचना दें। भण्डारसे इनका एक सचित्र आल्बम निकल जाय तो ता० २६ को मैं बिहारसरकारके अर्थसचिव कितना अच्छा हो । साथमें बिहार-प्रान्तीय जैन- श्रीअनुग्रहनारायणसे मिला था जैनसंस्कृतिकी दृष्टि संस्कृतिके इतिहासकी आलोकित करनेवाली कुछ से मैंने उनको समझाया कि जैन पृथक.ही रखे जायें। पंक्तियाँ भी रहें, पर मुझे दुःख है कि यह सांस्कृतिक आपने कहा कैबिनेटमें मैं आपके विचार उपस्थित विकासकी बात भी उनकी समझमें नहीं आई यदि करूँगा, आप निश्चिन्त रहें मुझसे बनेगा उतना मैं आई है तो क्यों नहीं उसे क्रियान्वित करते ? यह तो करूंगा। मेरा तो विश्वास है कि वे अवश्य जैनोंको हुई धार्मिक ट्रस्टकी बात । दूसरी बात यह है कि पटना बिलसे पृथक रखेंगे। में स्व० सुराना किसनचन्द जौहरीने १९३४ मार्चमें . २६-6-४८ मुनि कान्तिसागर एक 'जैन श्वेताम्बर सुकृत फण्ड' स्थापित किया था, पटना सिटी . Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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