Book Title: Anekant 1948 08 Author(s): Jugalkishor Mukhtar Publisher: Jugalkishor Mukhtar View full book textPage 2
________________ श्रीबाबू नन्दलालजी कलकत्ताकी उदारता श्रीमान् बाबू नन्दलालजी सरावगी कलकत्ताने वीरसेवामन्दिर द्वारा तय्यार जैन ग्रन्थोंके प्रकाशनार्थ गत जुलाई मासके अन्तमें दस हजार रुपयेके प्रशंसनीय दानका जो वचन दिया था उस दान सम्बन्धी सब रकमको आपने बड़े ही विनम्र और प्रेममय शब्दोंके साथ भेज दिया है। साथ ही ८००) रु० अपने दोनों पुत्रों चि० शान्तिनाथ और चि० निर्मलकुमारकी ओरसे अगले चार वर्षों की वार्षिक सहायताके रूपमें पेशगी भेजे हैं-वर्तमान वर्षकी सहायतामें २००) रु० उनकी ओरसे आप दे गये थे-और १००) रु० अपनी पत्नी श्रीमती कमलाबाईजीकी ओरसे 'सन्मति-विद्या-निधि' को प्रदान कर गये हैं, जो बालसाहित्यके प्रकाशनार्थ स्थापित की गई है। इस तरह हालमें आपने १११००) की रकम वीरसेवामन्दिरको नक़द प्रदान की है। इस महती उदारता और सरस्वती-सेवाकी उत्कट भावनाके लिये आप भारी धन्यवादके पात्र हैं। जुगलकिशोर मुख्तार वीरसेवामन्दिरको प्राप्त अन्य सहायता गत किरणमें प्रकाशित सहायता के बाद वीरसेवा- चार्यके, जिसमें २५) सफर खर्चके शामिल हैं। मन्दिरको जो अन्य सहायता प्राप्त हुई है वह निम्न १०२) दि० जैन समाज शाहगढ़, जिला सागर (दशप्रकार है और उसके लिये दातारमहानुभाव धन्यवाद- लक्षणपर्वके उपलक्षमें) मार्फत पं० परमानन्द के पात्र हैं: शास्त्रीके, जिसमें ४१) सफर खर्चके शामिल हैं। ५००) ला० कपूरचन्द धूपचन्दजी जैन, कानपुर १०१) श्रीमती पद्मावतीदेवीजी धर्मपत्नी साहू सुमत(दशलक्षणपर्वके उपलक्षमें) प्रसादजी नजीबाबाद (चि० पुत्र जिनेन्द्रकुमारके ५१) ला० चन्दनलाल गोपीचन्दजी जैन, कानपुर विवाहोपलक्षमें निकाले हुए दानमेंसे)। (दशलक्षणपर्वके उपलक्षमें) ५) दिगम्बर जैन पश्चायत किशनगढ़, जि. जयपुर १७६) दिगम्बर जैन सभा शिमला, (दशलक्षणपर्वके । (दशलक्षणपर्वके उपलक्षमें)। उपलक्षम) मार्फत पं० दरबारीलालजी न्याया- ९३५) अधिष्ठाता 'वीरसेवामन्दिर ___अनेकान्तको प्राप्त सहायता गत किरण नं० ६में प्रकाशित सहायताके बाद पलक्षमें) अनेकान्तको जो सहायता प्राप्त हुई है वह निम्न प्रकार ५) ला० वसन्तलालजी जैन जयपुर (दशलक्षणपर्वहै और उसके लिये दातारमहानुभाव धन्यवादके पात्र हैं के उपलक्षमें)। १०) ला० मुन्नीलालजी मुरादाबाद व ला० बच्चूलाल ५) दि. जैन पञ्चायत, गया (दशलक्षणपर्वके उप__जी आगरा (विवाहोपलक्षमें) मा. पं. विष्णुकान्त लक्षमें) मार्फत मोहनलालजी जैन मन्त्री। ५) ला० दीपचन्दजी पांड्या, छिन्दवाड़ा (विवाहो- २५) व्यवस्थापक 'अनेकान्त अनेकान्तकी सहायताका सदुपयोग अनेकान्तपत्रको जो सहायता विवाह-शादी आदिके शुभ अवसरोंपर भेजी जाती है उसका बड़ा ही अच्छा सदुपयोग किया जाता है । उस सहायतामें अजैन विद्वानों, लायबेरियों, गरीब जैन विद्यार्थियों तथा असमर्थ जैन संस्थाओंको अनेकान्त फ्री (बिना मूल्य) अथवा रियायती मूल्य ३) रु०में भेजा जाता है। इससे दातारोंको दोहरा लाभ होता है-इधर वे अनेकान्तके सहायक बनकर पुण्य तथा यशका अर्जन करते हैं और उधर उन दूसरे सजनोंके ज्ञानार्जनमें सहायक होते हैं, जिन्हें यह पत्र उनकी सहायतासे पढ़नेको मिलता है। अतः इस दृष्टिसे अनेकान्तको सहायता भेजने-भिजवानेकी ओर समाजका बराबर लक्ष्य रहना चाहिये और कोई भी शुभ अवसर इसके लिये चूकना नहीं चाहिये । व्यवस्थापक 'अनेकान्त' Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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