Book Title: Anekant 1948 03
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Jugalkishor Mukhtar

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Page 10
________________ ९६ अनेकान्त विलक्षण चमत्कार कहे जासकते हैं । पत्थरके खम्भोंपर जो दमक है वह शीशे को भी मात करती है । सत्रहवीं शताब्दी में टौमकोरियेट नामक यात्रीने दिल्लीके खम्भेको तांबेका बना हुआ समझ लिया था । प्रसिद्ध इतिहास-लेखक श्री विन्सेण्ट स्मिथने लिखा है- "पत्थरका काम करने वालोंकी निपुणता इन खम्भोंके निर्माण में अपनी पूर्ण पराकाष्ठाको पहुँच गई थी और उन्होंने वह चमत्कार कर दिखाया जो शायद बीसवीं सदीकी शक्ति से भी बाहर है । तीस-चालीस फुट लम्बे कड़े पत्थर के खम्भोंपर बहुत ही बारीकीका काम हुआ है और ऐसा ओप लगाया गया है जो अब 2 किसी कारीगर की शक्तिसे बाहर है।" सारनाथका सिंह- शीर्षक स्तम्भ इस कलाकी पराकाष्ठाको सूचित करता है । य्वानच्वाङ्गने भी लिखा है कि यह खम्भा उस जगह लगाया गया था जहाँ बुद्धने पहली बार अपने धर्मका उपदेश दिया। यह खम्भा सत्तर फुट ऊँचा था और इसकी दमक यशबकी जैसी थी । अन्तिम बात आज भी ज्यों-की-त्यों सच्ची है । सर जान मार्शलने इस भारतीय कलाकी प्रशंसा Education Intemational अशोक-कालीन एक और स्तम्भ जो हैलीडोरोस नामक स्थानपर स्थित है । [ वर्ष ९ में लिखा है-“शैली और कारीगरी दोनों दृष्टियोंसे यह सर्वोत्कृष्ट है। इसकी नक्काशी भारतीय शिल्पमें अद्वितीय है और मेरे विचार में प्राचीन संसारमें कोई चीज इस क्षेत्रमें इससे बढ़कर नहीं बनी।" सारनाथका सिंहस्तम्भ और उसपर बना हुआ चक्र अब हमारी राष्ट्रीय मुद्रा और चक्रध्वज नामक For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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