Book Title: Anekant 1948 03
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Jugalkishor Mukhtar

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Page 35
________________ किरण ३] सम्पादकीय १२१ पर, कोई अहिंसा प्रचारक सङ्घके नामपर, मनमानी काम लेनेका दुःस्साहस कर रहे हैं। इतना भी होता लूट मचा रहे हैं। पत्रोंमें विज्ञापन देते हैं, उपदेशकी तो गनीमत थी, शायद तूफानोंमें पड़कर लहरोंके का जामा पहनकर गाँव-गाँवमें घूमते हैं। चन्दा सहारे वह कभी न कभी पार होजाती । परन्तु यहाँ इकट्ठा करते हैं और गुलछरें उड़ाते हैं। समाजका तो आलम ही जुदा है। हर नाविक बना हुआ अपनी खून चूसने वाली ऐसी जाली संस्थाओंका सामूहिक अक्लकी पन्तल फाड़ रहा है। एक-दूसरेके मार्गका रूपसे भण्डाफोड़ होना चाहिये । इनके संचालकोंके विपरीत अनुसरण कर रहा है । नाव भँवरमें पड़कर काले कारनामोंका सचित्र उल्लेख होना चाहिये। मौतके चक्कर काट रही है और उसके सितमजरीफ ताकि समाज इन धूर्तोंके चङ्गलसे बच सके । नाविक एक दूसरेको धकेलने और अपनी मनमानी अनेकान्त ऐसे लेखोंका स्वागत करेगा। करनेपर तुले हुए हैं। और नावमें बैठे हुए निरीह ३ हमारा नेता अबोध माली सर पीटकर चिल्ला रहे हैं खेलना जब उनको तूफानों से आता ही न था । । हमारे नेता एक नहीं अनेक हैं, जितने नावमें फिर यह किश्तीके हमारे नाखुदा' क्यों होगये ? बैठने वाले नहीं उससे अधिक खेवट मौजूद हैं। कैसी दयनीय स्थिति है उस समाजकी, जिसके अगर यह खेवट एक मत होकर हमारी इस जीर्णशीर्ण नौकाको पार लगानेका प्रयत्न करते तो हमें __ भूतपूर्व बल पराक्रमको याद करके मृत्यु उसके पास आनेसे झिझकती है, परन्तु उसके मार्गदर्शक बने हुए अपने भाग्यपर गर्व होता, हम बाआवाज बुलन्द . 2 उसे स्वयं मौतके मुँहमें ले जारहे हैं । गन्तव्य स्थान कहते कि जहाँ इतर नौकाओंको एक-दो मल्लाह नहीं तक सम्यक् मार्गप्रदर्शन कोई नहीं कर रहा है। मिल पा रहे हैं, वहाँ हमारी सुरक्षाको इतने नाविक रविशसिद्दीकीके शब्दोंमेंमौजूद हैं । परन्तु खेद है कि स्थिति इसके विपरीत खिज्र ही खिज्र नज़र आते हैं हरसू' हमको । है। इतर नौकाओंके मनुष्योंमें बाकायदा जिन्होंने . ___ कारवाँ' बेख़बरे राहेगुज़र आज भी है । मार्गकी दुर्गम कठिनाइयोंका अनुभव प्राप्त किया है। एक मार्ग प्रदर्शक हो तो उसकी बात समझमें आए जिन्हें मार्गमें पड़ने वाली चट्टानों, लहरों और भँवरों और गिरते-पड़ते लक्षकी ओर भी बढ़ा जाए । परन्तु का ज्ञान है.और जो आँधी, पानी, तूफानोंके आनेका जहाँ न लक्षका पता है, न मार्गका पता है, वहाँ .... इरादा सप्ताह पूर्व भाँप लेते हैं बक़ौल इक़बाल सिवा दम घुट-घुटकर मरनेके और चारा भी क्या है ? जो है पमें पिन्हा' चश्मेबीना देख लेती है । ___ हम सच्चे मार्गप्रदर्शककी खोजमें इधर-उधर ज़मानेकी तबीयतका तकाज़ा देख लेती है ॥ भटकते हैं, परन्तु सफलता नहीं मिलती:उन्हीं सुदक्ष और अनुभवी मनुष्योंके हाथमें पतवार चलता हूं थोड़ी दूर हरइक तेज़रौ के साथ । देकर अपना खेवट चुना है और जिन्हें दक्षता प्राप्त नहीं पहचानता नहीं हूं अभी राहबरको मैं ॥ हई है. वे चुपचाप नावमें बैठे तुफानसेि टक्कर लेनेके . हमारी स्थिति उक्त शेरके अनसार होती तो भी अनुभव भी प्राप्त कर रहे हैं और पार भी होरहे हैं। १ खेवट-मल्लाह । २ पथप्रदर्शक। ३ चारों ओर । परन्तु अपने यहाँ बात ही जुदा है। किनारेपर ४ यात्रीदल । ५ भटकी राहमें। . लगे वृक्षोंसे जो भी तना, शाख, डाली, टहनी तोड़ ६ मिर्ज़ा ग़ालिब फरमाते हैं-मैं हर तेज़रौ (शीघ्र चलने म सका, उसने उसीको चप्पू बनाकर नाव खेनेका । वालेके साथ) चलता हूँ पर जब मुझे मालूम होता है कि अमोघ उपाय समझ लिया । जिन्हें टहनी न मिली, यह तो स्वयं भटक रहा है या लुटेरा है तो ठहर जाता हूं वह धोतियोंको ही पानीमें डालकर उससे पतवारका इस मेरे भटकनेका कारण यही है कि मैं अभी तक अपने १ पर्दैमें छुपा हुआ, अप्रकट । २ दूरन्देश दृष्टि । असली पथप्रदर्शक (राहबर) को नहीं पहचान पाया हूँ। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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