Book Title: Anekant 1948 03
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Jugalkishor Mukhtar

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Page 22
________________ यशोधरचरित्र सम्बन्धी जैन-साहित्य [ लेखक श्री अगरचंद नाहटा J कथा कहानी सबसे अधिक लोकप्रिय साहित्य हैं। भारतवर्ष में उसकी उपयोगिता की ओर सब समयध्यान रहा है, फलत: हजारों ग्रन्थ कथा-कहानियों एवं जीवनचरितों के रूप में पाये जाते हैं । मनोरञ्जन, सत्-शिक्षा एवं धर्मप्रचारके उद्देश्य से इनका निर्माण हुआ है। भारत पुरातन काल से धर्मप्रधान देश होने से सबसे अधिक कथा - ग्रन्थ धार्मिक आदर्शोंके प्रचारके लिये ही रचे गये हैं । इनमें से कईयोंका सम्बन्ध तो वास्तविक घटनाओंके साथ है; पर कई कथाएं धार्मिक अनुष्ठानोंकी ओर जनताको आकर्षित करने के उद्देश्य से गढ़ ली गई प्रतीत होती हैं। किन किन धार्मिक कार्योंको करके किस २ व्यक्तिने क्या लाभ उठाया ? एवं किन-किन पापकार्यों द्वारा किनकिन जीवोंने श्रनिष्ट- फल प्राप्त किया, इन्हीं बातोंको जनताके हृदयपर अङ्कित करनेके लिये धार्मिक कथा साहित्यका निर्माण हुआ एवं रचयिता इस कार्यमें सफल हुए भी कहे जा सकते हैं। यद्यपि आज भी कहानीका प्रचार ही सर्वाधिक है पर अब उसका उद्देश्य एवं रूप बहुत कुछ परिवर्तित हो चुका है । वर्तमान लोक-मानसके झुकावपर विचार करने से अब प्राचीन शैली अधिक दिन रुचिकर नहीं रह सकेगी अतः हमारे धर्मप्रधान कथा-चरित ग्रन्थोंको भी नये ढंग से लिखकर प्रचारित करना आवश्यक हो गया है, अन्यथा उनकी उपयोगिता घटकर विनाश होना अवश्यम्भावी है । "भारतीय कथा - साहित्य में जैनकथा - साहित्य भी अपनी विशालता एवं विविधताकी दृष्टिसे महत्वपूर्ण स्थान रखता है जिसका संक्षिप्त परिचय मैं अपने 'जैनकथा - साहित्य' शीर्षक लेख में कर चुका हूं अन यहां उसपर पुन: विचार नहीं किया जाता। कई * जैन सिद्धान्त भास्कर वर्ष १२, अङ्क १ Jain Education International जैनकथाएँ तो विश्वव्यापी हो गई हैं। यही उनकी जनप्रियताका ज्वलन्त उदाहरण है । जनरुचिका ध्यान रखते हुये जैन विद्वानोंने लोक-कथाओं को भी खूब अपनाया और उन कथाओंके सम्बन्धमें सैकड़ों प्रन्थोंका निर्माण किया जिसका परिचय भी मेरे "लोक कथाओं ÷ सम्बन्धी जैन साहित्य" एवं "विक्रमादित्य + सम्वन्धी जैन साहित्य' शीर्षक लेखों द्वारा पाठकोंको मिल चुका है। कई जैनकथाओं का प्रचार जैनसमाज तक ही सीमित है। पर दि० श्वे० दोनों सम्प्रदायों में वे समानरूपसे आहत हैं। ऐसी कथाश्रमेंसे श्रीपाल चरित्र सम्बन्धी साहित्यका परिचय भी अनेकान्त वर्ष २ । ३ अङ्क २।७ में कई वर्ष पूर्व प्रकाशित कर चुका हूं । प्रस्तुत लेखमें ऐसे ही एक अन्य चरित सम्बन्धी साहित्यका परिचय दिया जारहा है जिसका नाम है 'यशोधरचरित्र' । दि० एवं श्वे० दोनों विद्वानोंके रचित करीब ५० ग्रन्थ इसी चरित सम्बन्धी जानने में आये हैं। उनकी सूची पाठकों की जानकारी के लिये इस लेख में दी जारही है । यशोधर चरित्रकी प्राचीनता -- नृपति यशोधर कब हुए हैं। प्रमाणाभावसे समय बतलाया नहीं जासकता। कथा वस्तुपर विचार करनेपर जब देवीके आगे पशुबलिका अमानुषिक कार्य जोरों से चल रहा था तब उसके कुफलको बतलाने के प्रसङ्गसे इसकी रचना हुई ज्ञात होती है। प्राप्त यशोधर चरित्रों में सबसे प्राचीन राजर्षि प्रभञ्जन रचित ही प्रतीत होता है । वि० सं०८३५ में श्वे० उद्योतन सूरिके रचित कुवलयमाला कथामें इसका ÷ नागरी प्रचारिणी पत्रिका वर्ष ५२, अङ्क १ + विक्रमस्मृति ग्रन्थ एवं जैन सत्यप्रकाश वर्ष ६, अङ्क ४ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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