Book Title: Anekant 1948 02
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Jugalkishor Mukhtar

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Page 8
________________ संजय वेलट्ठिपुत्त और स्याद्वाद ( लेखक - न्यायाचार्य पण्डित दरबारीलाल जैन, कोठिया) दर्शन स्याद्वाद सिद्धान्तको कितने ही जैन विद्वान ठीक तरहसे समझने का प्रयत्न नहीं करते और धर्मकीर्त्ति एवं शङ्कराचायँकी तरह उसके बारेमें भ्रान्त उल्लेख अथवा कथन कर जाते हैं, यह बड़े ही खेदका विषय है। काशी हिन्दूविश्वविद्यालय में संस्कृत - पाली विभाग के प्रोफेसर पं० बलदेव उपाध्याय एम० ए० साहित्याचार्यने सन् १६४६ में 'बौद्ध - दर्शन' नामका एक ग्रन्थ हिन्दीमें लिखकर प्रका शित किया है, जिसपर उन्हें इक्कीससौ रुपयेका डालमियां पुरस्कार भी मिला है। इसमें उन्होंने, बुद्ध समकालीन मत- प्रवर्तकोंके मतोंको देते हुए, संजय वेलट्ठपुत्त अनिश्चिततावाद मतको भी बौद्धोंके 'दीघनिकाय ' ( हिन्दी अ० पृ० २२) प्रन्थसे उपस्थित किया है और अन्तमें यह निष्कर्ष निकाला है कि "यह अनेकान्तवाद प्रतीत होता है । सम्भवतः ऐसे ही आधारपर महावीरका स्याद्वाद प्रतिष्ठित किया गया था ।" इसी प्रकार दर्शन और हिन्दीके ख्यातिप्राप्त बौद्ध विद्वान् राहुल सांकृत्यायन अपने 'दर्शन-दिग्दर्शन' में लिखते हैं + - "आधुनिक जैन दर्शनका आधार 'स्याद्वाद' है, जो मालूम होता है संजय वेलट्ठिपुत्तके चार अङ्गवाले अनेकान्तवादको (!) लेकर उसे सात अङ्गवाला किया गया है । संजयने तत्वों (परलोक, देवता) के बारेमें कुछ भी निश्चयात्मक रूपसे कहने से इन्कार करते हुए उस इन्कारको चार प्रकार कहा है * १ देखो, बौद्धदर्शन पृ० ४० । + २ देखो, दर्शन दिग्दर्शन पृ० ४६६-६७ । Jain Education International (१) है ? — नहीं कह सकता । (२) नहीं है ? - नहीं कह सकता । (३) है भी नहीं भी ? — नहीं कह सकता । (४) न है और न नहीं है ? - नहीं कह सकता। इसकी तुलना कीजिए जैनोंके सात प्रकारके. स्याद्वाद से - (१) है ? - हो सकता है (स्याद् अस्ति ) (२) नहीं है ? - नहीं भी हो सकता ( स्यान्नास्ति ) - (३) है भी नहीं भी ? - है भी और नहीं भी हो सकता है (स्यादस्ति च नास्ति च ) उक्त तीनों उत्तर क्या कहे जा सकते (वक्तव्य ) हैं ? इसका उत्तर जैन 'नहीं' में देते हैं (४) स्याद् (हो सकता है) क्या यह कहा जा सकता (वक्तव्य ) है ? — नहीं, स्याद् अ-वक्तव्य है । (५) 'स्याद् अस्ति' क्या यह वक्तव्य है ? नहीं, 'स्याद् अस्ति' अवक्तव्य है । (६) 'स्याद् नास्ति ' क्या यह वक्तव्य है ? नहीं, 'स्याद् नास्ति' अवक्तव्य है । (७) 'स्याद् अस्ति च नास्ति च' क्या यह वक्तव्य है ? नहीं, 'स्याद् अस्ति च नास्ति च ' अ वक्तव्य है। के पहलेवाले तीन वाक्यों (प्रश्न और उत्तर दोनों) को दोनों मिलाने से मालूम होगा कि जैनोंने संजयऔर उसके चौथे वाक्य "न है और न नहीं है” को अलग करके अपने स्याद्वादको छै भङ्गियाँ बनाई हैं, छोड़कर 'स्याद्' भी अवक्तव्य है यह सातवाँ भङ्ग तैयार कर अपनी सप्तभङ्गी पूरी की । उपलभ्य सामग्री से मालूम होता है, कि संजय अनेकान्तवादका प्रयोग परलोक, देवता, कर्मफल, For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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