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सोमनाथका मन्दिर
[बा० छोटेलाल जैन, प्रेसीडेंट “गनीट्रेड्स एसोसियेशन" कलकत्ता )
mज हम अपने पाठकोंको एक ऐसे भावनाको सबल और दृढ बनाने के लिये सोमनाथ M प्रदेशका दिग्दर्शन कराते हैं जिसके मन्दिरके नव-निर्माणका परामर्श दिया है। इस
महत्वको मुसलमानोंके निरन्तर घोष से हिन्दुओंके हृदय में अपार हर्ष हुआ है। अत्याचारोंसे हम भूलसे गये हैं। प्रत्येक हिन्दु सोमनाथ मन्दिरके लिये दान देने में यह स्थान है काठियावाड़, जिसका गौरव समझता है, क्योंकि सोमनाथ १२ ज्योतिर्लिङ्गों प्राचीन नाम था सौराष्ट्र। जूना- में सर्व प्रथम है, और सारे भारतका महान तीर्थ है।
गढ़की रियासत काठियावाड़में काठियावाड़ प्राय: चारों ओरसे जलावेष्टित है। शामिल है। काठियावाड़ ३२ बड़ी रियासतोंमें विभक्त केवल उत्तरकी ओरसे एक लम्बा सङ्कीर्ण भूमि अंश है जिनमें सबसे बड़ी जूनागढ़ है, और जूनागढ़ उन इसे गुजरातसे मिलाता है। इसी कारण गुजरात सब रियासतोंसे कर लेती है। भूतपूर्व नवाब जूना- और राजपूतानेका, जो इसके उत्तर में है, इतिहास गढ़ने अपनी बहुसंख्यक हिन्दु प्रजापर नाना प्रकारके सौराष्ट्र के मध्यकालीन इतिहाससे घनिष्ठ सम्बन्ध अत्याचार किये। यही नहीं, भारतके स्वतन्त्र होने रखता है। पर नवाब प्रजाकी इच्छाके विरुद्ध पाकिस्तानसे मिल इतिहासगया, परन्तु प्रजाको सामूहिक शक्ति के सामने नवाबको जबसे भगवान कृष्ण मथुराको छोड़कर द्वारिकामें कराची भागना पड़ा और अब पश्चिमका यह पुनीत आये, तभीसे सौराष्ट्र देश प्रकाशमें आया । द्वारिकाके भू-भाग प्रजाको इच्छानुसार भारतमें मिल गया है। यादवोंके समयसे यहां प्रभास क्षेत्र में यात्रियोंके आने हम आपको यह बतलायेंगे कि काठियावाड़के प्रायद्वीप जानेका प्राचीन वर्णन मिलता है। में, जिसको औरङ्गजेबने "भारतका सौन्दर्य और ईसासे ३२२ वर्ष पूर्व भारतके प्रसिद्ध सम्राट आभूषण" कहा था शैवों, वैष्णवों, बौद्धों, तथा चन्द्रगुप्त मौर्य के चार भागोंमेंसे सौराष्ट्र एक था। और जैनियोंके कितने ही प्राचीन और पवित्र मन्दिर और ईसासे २५० वर्ष पूर्वका महाराजा अशोकका शिलालेख अन्य धर्म स्थान हैं। कितनी ही मसजिदें हिन्दु गिरनार में मिलता है। यहां गिरनार पर्वतकी तहलटी तीर्थोकी भूमिपर ध्वस्त किये देवालयोंकी सामग्रीसे में महाराज अशोकने सुदर्शन नामक एक विशाल बनी हुई हैं। कितनी ही मसजिदें हिन्दु-मन्दिरोंका मोल बनवाई थी। मौर्य वंशके पतनके पश्चात् केवल साधारण रूपान्तर हैं, जो असल में हिन्दुओंके सौराष्ट्र ईसासे १५५ वर्ष पूर्व तक शुङ्ग वंशके पुष्यमित्र ही मन्दिर हैं।
के आधीन रहा, उनके बाद शक क्षत्रपोंके अधिकार में लगभग एक सहस्र वर्षसे परतन्त्रता ग्रस्त भारतमें चला गया जिनमें महाराज रुद्रमन (सन् १५०) बहुत हिन्दुओंको धर्मभावना मुसलमानों के निरन्तर प्रत्या- प्रसिद्ध हुए। इनका भी शिलालेख यहां मिलता है। चारसे दलित और अर्धमृत होती रही है। आज उन्होंने सुदर्शन झीलकी, जिसका बांध टूट गया था, स्वतन्त्र भारतमें भारतसरकारके उप-प्रधानमन्त्री मरम्मत करवाई थी। फिर यहां गुप्त वंशका आधिश्रीयुत सरदार बल्लभभाई पटेलने हिन्दुओंकी धर्म पत्य हुआ। महाराज स्कन्दगुप्तने भी वहां एक
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