Book Title: Anekant 1948 02
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Jugalkishor Mukhtar

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Page 40
________________ ७० अनेकान्त [ वर्षे गया है। जिससे यह सम्भव है कि इन्होंने किसी छन्दोंका कथन विस्तारसे किया गया है। अतएव स्तुति ग्रन्थको भी रचना की हो; क्योंकि रसोंमें रति यहांपर नहीं कहा जाता है। (शृङ्गार) का वर्णन करते हुए देव-विषयक रतिके उदाहरणमें निम्न पद्य दिया है छन्दोनुशासननो मुक्त्यै स्पृहयामि विभवैः कार्य न सांसारिकैः, . जैनसाहित्य में छन्दशास्त्रपर 'छन्दोनुशासन, +. स्वयम्भूछन्द, * छन्दोकोष, * और प्राकृतपिङ्गल* कित्वायोज्य कर पुनरिदं त्वामीशमभ्यर्चये। बाद श्री आदि अनेक छन्द ग्रन्थ लिखे गये हैं। उनमें प्रस्तुत स्वप्ने जागरणे स्थितौ विचलने दुःखे सुखे मंदिरे, छन्दोनुशासन सबसे भिन्न है। यह संस्कृत भाषाका कान्तारे निशिवासरे च सततं भक्तिर्ममास्तु त्वयि। छन्द ग्रन्थ है और पाटनके श्वेताम्बरीय ज्ञानभंडार में __ इस पद्यमें बतलाया है कि हे नाथ ! मै मुक्तिपुरी * अयं च सर्वप्रपञ्चः श्रीवाग्भटाभिधस्वोपज्ञ छन्दोकी कामना नहीं करता और न सांसारिक कार्योंके नुशासने प्रपञ्चित इति नात्रोच्यते।' . लिये विभव (धनादि सम्पत्ति) को ही आकांक्षा करता + यह छन्दोनुशासन जय कीतिके द्वारा रचा गया है। इसे इं; किन्तु हे स्वामिन् हाथ जोड़कर मेरी यह प्रार्थना उन्होंने मांडव्व, पिंगल, जनाश्रय, सेतव, पूज्यपाद (देवनंदी) है कि स्वप्नमें, जागरणमें, स्थितिमें, चलनेमें दुःख- और जयदेव अादि विद्वानोंके छन्द ग्रन्थोंको देखकर बनाया सुखमें, मन्दिरमें, वनमें, रात्रि और दिनमें निरन्तर गया है। यह जयकीर्ति अमलकीर्तिके शिष्य थे। सम्वत् आपकी ही भक्ति हो। ११६२ में योगसारकी एक प्रति अमलकीर्तिने लिखवाई थी तरह कृष्ण नील वोका वर्णन करते हुए इससे जयकीर्ति १२वीं शताब्दीके उत्तरार्ध और १३ वीं राहडके नगर और वहां प्रतिष्ठित नेमिजिनका शताब्दीके पूर्वार्धके विद्वान् जान पड़ते हैं। यह ग्रन्थ स्तवन-सूचक निम्न पद्य दिया है जैसलमेरके श्वेताम्बरीय ज्ञानभण्डारमें सुरक्षित है। देखो गायकवाड संस्कृतसीरीजमें प्रकाशित जैसलमेर भाण्डागारीय मरकतमणिकृष्णो यत्र नेम जिनेन्द्रः। ग्रन्थानां सूची । * यह अपभ्रंशभाषाका महत्वपूर्ण मौलिक छन्द ग्रन्थ विकचकुवलयालि श्यामलं यत्सरोम्भः है इसका सम्पादन एच० डी० वेलंकरने किया है। देखो प्रमुदयति न स्कांस्तत्पुरं राहडस्य ॥ बम्बईयूनिवर्सिटी जनरल सन् १९३३ तथा रायल__इस पद्यमें बतलाया है कि जिसमें वन-पंक्तियां एशियाटिक सोसाइटी जनरल सन् १६३५ मजलमेघके समान नीलवणे मालूम होती हैं और यह रत्नशेखरसूरिद्वारा रचित प्राकृतमाषाका जिस नगरमें नीलमणि सदृश कृष्णवर्ण श्री नेमि छन्दकोश है। जिनेन्द्र प्रतिष्ठित हैं तथा जिसमें तालाब विकसित * पिंगलाचायेके प्राकृतपिंगलको छोड़कर, प्रस्तुत कमलसमूहसे पूरित हैं वह राहडका नगर किन किनको पिंगल ग्रन्थ अथवा 'छन्दो विद्या' कविवर राजमलकी प्रमुदित नहीं करता। कृति हैं जिसे उन्होंने श्रीमालकुलोत्पन्न वणिकपति राजा महाकवि वाग्भट्टकी इस समय दो कृतियां उप- भारमल्ल के लिये रचा था। इस ग्रन्थमें छन्दोंका लब्ध हैं-छन्दोनुशासन और काव्यानुशासन । उनमें निर्देश करते हुए राजा भारमल्ल के प्रताप यश और वैभव छन्दोनुशासन काव्यानुशासनसे पूर्व रचा गया है। श्रादिका अच्छा परिचय दिया गया है। इन छन्द ग्रन्थोंके क्योंकि काव्यानुशासनकी स्वोपज्ञवृत्तिमें स्वोपज्ञ- अतिरिक्त छन्दशास्त्र वृत्तरत्नाकर और श्रुतबोध नामके छन्दोनुशासनका उल्लेख करते हुए लिखा है कि उसमें छन्द ग्रन्थ और हैं जो प्रकाशित हो चुके हैं। सजल Jain Education International For Personal & Private Use Only www ainelibrary.org

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