Book Title: Anekant 1948 02
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Jugalkishor Mukhtar

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Page 44
________________ ८२. वेदनाको मन्दिरसे प्रकाशित होने वाले 'अनेकान्त' पत्रको जनवरी मासको किरण में भारतकी महाविभूति का दुःसह वियोग' शर्षिक के नीचे कुछ प्रकट भी कर चुका है। आज महात्माजीकी १३ वींके दिन जबकि उनके शरीरकी पवित्र भस्म नदियों में प्रवाहितकी जायगी, नगरकी सारी जैन जनता वीरसेवामन्दिर में एकत्र हुई, और उसने महात्माजीके इस आकस्मिक निधनपर अपना भारी दुःख तथा शोक प्रकट किया। साथही यह स्वीकार किया कि आपभी महावीर के अहिंसा, सत्य और अपरिग्रहवाद जैसे सिद्धान्तोंकी मौलिक शिक्षाओंका व्यापक प्रचार और प्रसार करने बाले एक सन्तपुरुष थे। देश आपके उपकारों और सेवाओं का बहुत बड़ा ऋणी है आपके इस निधनसे भारतको ही नहीं बल्कि सारे विश्वको भारी क्षति पहुंची है, जिसकी शीघ्र पूर्ति होना असंभव जान गाँधी की याद ! अनेकान्त | वर्ष ६ पड़ता है । अतः वीर सेवामन्दिरका समस्त परिवार एकत्रित जैन जनता और जैनेतर जनताके साथ स्वff महात्माजी की अपनी श्रद्धांजलि अर्पण करता हुआ उनकी आत्माके लिये परलोकमें सुख-शान्ति की कामना करता है और उनके समस्त परिवार के प्रति अपनी हार्दिक समवेदना व्यक्त करता है। साथ ही यह दृढ़भावना और भगवान महावीर से प्रार्थना भी करता है कि पं० जवाहरलाल नेहरु सरदार बल्लभ भाई पटेल, डा० राजेन्द्रकुमार और मौलाना अब्दुलकलाम आजाद जैसे देशके वर्तमान नेताओं को जिनके ऊपर महात्माजी अपने मिशनका भार छोड़ गये हैं वह अपार बल और साहस प्राप्त होवे जिससे वे राष्ट्र के समुचित निर्माण और उत्थान के कार्य में पूरी तरह समर्थ हो सकें । Jain Education International [ लेखक :- मु० फजलुलरहमान जमाली, सरसावी ) वह देशका रहवर था, वह महबूबे नजर था ! सच पूछो तो वह हिन्दका मुमताज बशर था !! हिन्दूको अगर जान तो मुस्लिमका जिगर था ! गङ्गाको अगर मौज तो जमनाकी लहर था !! वह सो गया सोया है मगर सबको जगाकर ! रूपोश हुआ पर्दे में, वह पर्दा उठाकर !! तस्वीरे मुहब्बत था, अहिंसाका वह पैकर ! बहता हुआ वह रहम व हमीयतका समन्दर !! ऐ आह ! कि वह छुप गया न रशेद मनव्वर ! हर मुल्क में अन्धेर तो मातम हुआ घर घर !! तबका यह उलट जाय तो कुछ दूर नहीं है ! गान्धीकी मगर रूहको मंजूर नहीं है !! अब कौन है इस डूबती कश्तीका सहारा ! उन लोगों का याँ दौर है जो हैं सितम आरा !! यह सदमा तो दिलको नहीं होता था गवारा ! क्या डूब चुका हिन्दकी किस्मतका सितारा !! उम्मीद बढ़ी दिलकी लगे होश ठिकाने ! अब दूसरा गांधी किया 'नहरू' को खुदाने !! जां देके बड़े कामको अंजाम दिया है ! कीमतको अहिंसाकी अदा करके रहा है गाँधी जिया जिस तरह से यूं कौन जिया है ! नाथूने मगर हिन्दको बदनाम किया है !! जो शमा हिदायत थी उसे आह बुझा दी ! जालिमने लगी आग में और आग लगा दी ! * यह उर्द ू कविता १२ फरवरी सन् १६४८ को सरसावा की सार्वजनिक शोकसभा में पढ़ी गई और पसन्द की गई For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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