Book Title: Anekant 1948 02
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Jugalkishor Mukhtar

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Page 52
________________ Regd. A-731. ASO02590950-50-50-50:530525052502525-5952.5IS.5a59:Sapna कीरसेकामन्दिरके नये प्रकाशन CBFBF-885505BEsses PBEBES-BSESSB85555 1 अनित्यभावना- मुख्तार श्रीजुगलकिशोरके६ न्याय-दीपिका (महत्वका नया संस्करण) , हिन्दी पद्यानुवाद और भावार्थ-सहित / इष्टवियोगादिके न्यायाचार्य पं० दरवारीलालजी कोठियाद्वारा सम्पादित कारण कैसा ही शोकसन्तप्त हृदय क्यों न हो, इसको एक और अनुवादित न्यायदीपिकाका यह विशिष्ट सँस्करण / बार पढ़ लेनेसे बड़ी ही शान्तताको प्राप्त हो जाता है / अपनी खास विशेषता रखता है। अब तक प्रकाशित इसके पाठसे उदासीनता तथा खेद दूर होकर चित्तमें संस्करणोंमें जो अशुद्धियां चली प्रारही थीं उनके प्राचीन प्रसन्नता और सरसता अाजाती है। सर्वत्र प्रचारके प्रतियोंपरसे संशोधनको लिये हुए यह संस्करण मूल ग्रंथ योग्य है / मू०) और उनके हिन्दी अनुवादके साथ प्राक्कथन, सम्पादकीय 2 आचार्य प्रभाचन्द्रका तत्त्वार्थसूत्र- नया 101 पृष्ठकी विस्तृत प्रस्तावना, विषयसूची और कोई 8 // प्राप्त संक्षिप्त सूत्रग्रन्थ, मुख्तार श्रीजुगलकिशोरकी सानुवाद परिशिष्टोंसे संकलित है, साथमें सम्पादक-द्वारा नवनिर्मित व्याख्या सहित / मू०।) 'प्रकाशाख्य' नामका एक संस्कृत टिप्पण लगा हुआ है, 3 सत्साधु-स्मरण-मङ्गलपाठ- मुख्तार श्री- जो ग्रन्थगत कठिन शब्दों तथा विषयोंका खुलासा करता जुगलकिशोरकी अनेक प्राचीन पद्योंको लेकर नई योजना, हुत्रा विद्यार्थियों तथा कितने ही विद्वानोंके कामकी चीज सुन्दर हृदयग्राही अनुवादादि-सहित / इसमें श्रीवीर- है। लगभग 400 पृष्ठोंके इस सजिल्द वृहत्संस्करणका वद्धमान और उनके बाद के. जिनसेनाचार्य पर्यन्त लागत मूल्य 5) रु. है। कागजकी कमीके कारण थोडी महान् श्राचार्योके अनेकों श्राचार्यों तथां विद्वानों द्वारा ही प्रतियां छपी है। अतः इच्छकोंको शीघ्र ही मंगा किये गये महत्वके 136 पुण्य स्मरणोंका संग्रह है और लेना चाहिये। शुरूमें 1 लोकमङ्गल-कामना, 2 नित्यकी श्रात्म-प्रार्थना, 1 लाकमङ्गल-कामना, 2 नित्यकी श्रात्म-प्रार्थना. 7 विवाह-समुद्देश्य-लेखक पं० जुगलकिशोर 3 साधुवंशनिदर्शक-जिनस्तुति, 4 परमसाधमुखमद्रा और मुख्तार, हालम प्रकाशित चतुथ सस्करण / / 5 सत्साधुवन्दन नामके पाँच प्रकरण हैं। पस्तक पढते यह पुस्तक हिन्दी-साहित्यमें अपने ढंगकी एक हो। समय बड़े ही सुन्दर पवित्र विचार उत्पन्न होते हैं और चीज है। इसमें विवाह जैसे महत्वपूर्ण विषयका बड़ा ही साथ ही प्राचार्योका कितना ही इतिहास सामने श्राजाता मार्मिक और तात्त्विक विवेचन किया गया है, अनेक ।है। नित्य पाठ करने योग्य है। मू०॥) विरोधी विधि-विधानों एवं विचार-प्रवृत्तियोंसे उत्पन्न हुई 4 अध्यात्म-कमल-मार्तण्डः- यह पञ्चाध्यायी विवाहकी कठिन और जटिल समस्यायोंको बड़ी युक्तिके तथा लाटी संहिता आदि ग्रन्थोंके कर्ता कविवर राजमल्लकी साथ दृष्टि के स्पष्टीकरण-द्वारा सुलझाया गया है और इस अपूर्व रचना है। इसमें अध्यात्मसमुद्रको कजेमें बन्द तरह उनमें दृष्टिविरोधका परिहार किया गया है। विवाह किया गया है / साथमें न्यायाचार्य पं० दरबारीलाल कोठिया क्यों किया जाता है ? धर्मसे, समाजसे और गृहस्थाश्रमसे और पण्डित परमानन्दजी शास्त्रीका सुन्दर अनुवाद, उसका क्या सम्बन्ध है ? वह कब किया जाना चाहिये ? विस्तृत विषयसूची तथा मुख्तार श्रीजुगलकिशोरजीकी उसके लिये वर्ण और जातिका क्या नियम हो सकता है ? लगभग 80 पेजकी महत्वपूर्ण प्रस्तावना है। बड़ा ही विवाह न करनेसे क्या कुछ हानि-लाभ होता है ? उपयोगी ग्रन्थ है। मू०१||) इत्यादि बानोंका इस पुस्तकका बड़ा ही युक्ति पुरस्सर 5 उमास्वामि-श्रावकाचार-परीक्षा-मुख्तार एवं हृदयग्राही वर्णन है। पार्ट पेपर पर छपी है / श्रीजुगलकिशोर जीकी ग्रंथपरीक्षाओं का प्रथम अंश. विवाहोंके अवसरपर वितरण करने योग्य है। मू० ) ग्रंथ-परीक्षाओं के इतिहास को लिये हुये 14 पेजकी नई प्रकाशन विभाग'प्रस्तावना-सहित / मू०) वीरसेवामन्दिर, सरसावा (सहारनपुर) Sesesamesegressesesesesesesekesesesesesesesesesssessses प्रकाशकई ल. एएमानन्दजैन शास्त्री भारतीयज्ञानपीठ काशीके लिये हाजितकुमारजैन शास्त्री द्वारा अकलङ्कप्रेस सहारनपुर में मुद्रित 6558856-26-05-1985202888seselese FESesesses-05-5050

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