Book Title: Anekant 1948 02
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Jugalkishor Mukhtar

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Page 43
________________ किरण २] त्याग नामके दो ग्रन्थों का समुल्लेख किया है। उनमें से नेमिनिर्वाणके ८ वें सर्गमें जलक्रीड़ा और १० वें सगँ में मधुपानसुरतका वर्णन दिया हुआ है। हां, 'राजीमती परित्याग' नामका अन्य कोई दूसरा ही काव्यग्रन्थ है जिसमें उक्त दोनों विषयोंके कथन देखनेकी सूचना गई है । यह काव्यग्रन्थ सम्भवतः पं० श्रशाधर जीका 'राजमती विप्रलम्भ' या परित्याग जान पड़ता है; क्योंकि उसी सोलहवें पृष्ठ पर 'विप्रलम्भ वर्णनं राजमती परित्यागादौ वाक्य के साथ उक्त ग्रन्थका नाम 'राजीमती परित्याग' सूचित किया है। जिससे स्पष्ट मालूम होता है कि उक्त काव्यग्रन्थ में 'विप्रलम्भ' विरह का वन किया गया है । विप्रलम्भ और परित्याग शब्द भी एकार्थक है । यदि यह कल्पना ठीक है तो प्रस्तुत प्रन्थका रचना काल १३ वीं शताब्दीके विद्वान् पं० श्रशाधर जीके बादका हो सकता है । महात्मा गान्धीके निधनपर शोक - प्रस्ताव इन सब प्रन्थोल्लेखोंसे यह स्पष्ट जाना जाता है कि ग्रन्थकर्ता उल्लिखित विद्वान आचार्योंका भक्त और उनकी रचनाओंसे परिचित तथा उन्हींके द्वारा मान्य दिगम्बरसम्प्रदायका अनुसर्ता अथवा अनुयायी था अन्यथा समन्तभद्राचार्यके उक्त स्तवन पद्यके साथ भक्ति एवं श्रद्धावश 'आगम और आप्तवचन' जैसे विशेषणों का प्रयोग करना सम्भव नहीं था । । महात्मा गान्धी "महात्मागांधी की तेरहवीं दिवसपर २२ फरवरी १६४८ को वीरसेवामन्दिर में श्रीमान् पण्डित जुगलकिशोरजी मुख्तार सम्पादक अनेकान्त' की अध्यक्षता में शोक सभा की गई जिसमें विविध वक्ताओंने गान्धीजी के प्रति अपनी हार्दिक श्रद्धांजलियां प्रकट कीं और उपस्थित जनताने निम्न शोक प्रस्ताव पास किया Jain Education International विश्व के महान् मानव, मानव समाजके अनन्य सेवक अहिंसा-सत्य के पुजारी और भारत के उद्धार में निधनपर शोक - प्रस्ताव ! अब रही 'रचना समयंकी बात' सो इनका समय बिक्रमको १४वीं शताब्दीका जान पड़ता है; क्योंकि काव्यानुशासनवृत्ति में इन्होंते महाकवि दण्डी वामन और वाग्भटादिक द्वारा रचेगये दश काव्य गुणों में से सिर्फ माधुर्य ओज और प्रसाद ये तीन गुण ही माने हैं और शेष गुणों का इन्हीं तीनमें अन्तर्भाव किया है । इनमें वाग्भट्टालङ्कारके कर्ता वाग्भट विक्रमकी १२ वीं शताब्दी के उत्तरार्धके विद्वान हैं। इससे प्रस्तुत वाग्भट वाग्भट्टालङ्कारके कर्तासे पश्चात् वर्ति है यह सुनिश्चित है । किन्तु ऊपर १३ वीं शताब्दीके विद्वान पं० आशाधर जीके 'राजीमती विप्रलम्भ या परित्याग' नामके ग्रन्थका उल्लेख किया गया है जिसके देखने की प्रेरणा की गई है। इस प्रन्थोल्लेख से इनका समय तेरहवीं शताब्दीके बादका सम्भवतः विक्रमकी १४ वीं शताब्दीका जान पड़ता है । . वीरसेवा मन्दिर ता० १५-२-४८ ८१ ÷ इति दण्डिवामनवाग्भटादिप्रणीत दशकाव्यगुणाः । वयं तु माधुर्यौजप्रसादलक्षणास्त्रीनेव गुणा मन्यामहे, शेषस्तेष्वेवान्तर्भवन्ति । तद्यथा - माधुर्ये कान्तिः सौकुमार्य च श्रजसि श्लेषः समाधिरुदारता च । प्रसादेऽर्थव्यक्ति: समता चान्तर्भवति । काव्यानुशासन २, ३१ सविशेषरूप से संलग्न, उसकी महाविभूति महात्मा मोहनदास गांधीकी ३० जनवरीको होनेवाली निर्मम हत्याका दुःसमाचार सुना है और साथही यह मालूम हुआ है कि उसके पीछे कोई भारी षडयन्त्र है जो देशमें फासिस्टवादका प्रचार कर तबाह व बर्बाद करना चाहता है तबसे वीर सेवामन्दिर का, जो कि रिसर्च इन्स्टियूट और साहित्य सेवाके रुप में जैन समाजकी एक प्रसिद्ध प्रधान संस्था है, सारा परिवार दुःखसे पोडित और शोकाकुल है और अपनी उस For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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