Book Title: Anekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12 Author(s): Jugalkishor Mukhtar Publisher: Veer Seva Mandir Trust View full book textPage 7
________________ अनेकान्त [वर्ष १,किरण १ असंख्य प्राणियोंके अज्ञानान्धकार को दूर करके उन्हें की रानी चेलना भी राजा चेटक की पुत्री थी और यथार्थ वस्तु-स्थितिका बोध कराया, तत्त्वार्थको सम- इस लिये वह रिश्तेमें महावीरकी मातस्वमा (मावसी) झाया, भूलें दूर की, भ्रम मिटाए, कमजोरियाँ हटाई, x होती थी । इस तरह महावीरका अनेक राज्योंके भय भगाया, आत्म विश्वास बढ़ाया, कदाग्रह दूर साथमें शारीरिक सम्बन्ध भी था । उनमें आप के किया, पाखण्डबल घटाया, मिथ्यात्व छड़ाया, पतितों धर्मका वहुत कुछ प्रचार हुआ और उसे अच्छा राजाको उठाया, अन्याय-अत्याचारको रोका, हिंसाका श्रय मिला है। विरोध किया, साम्यवादको फैलाया और लोगोंको विहारके समय महावीरकं साथ कितने ही मुनिस्वावलम्बन तथा संयमकी शिक्षा दे कर उन्हें आत्मो आर्यिकाओं नथा श्रावक-श्राविकाओं का मंच रहता त्कर्षके मार्ग पर लगाया । इस तरहपर आपने लोकका था। इस मंघके गणध की संग्या ग्यारह तक पहुँच अनन्त उपकार किया है । गई थी और उनमें सबसे प्रधान गौतम म्वामी भगवानका यह विहार काल ही उनका तीर्थ-प्रव- , जो 'इन्द्रमनि' नामम भी प्रसिद्ध हैं और समवननकाल है, और इस तीर्थ-प्रवर्तनकी वजहसे ही वे मरणमें मुख्य गणधर का कार्य करते थे । ये एक 'तीर्थकर' कहलाते हैं। आपके विहारका पहला स्टेशन बहत वडे ब्राह्मण विद्वान थे जो महावीरको केवलराजगृहीक निकट विसलाचल तथा वेभार पर्वतादि मानकी मंशामिहान पश्चात उनम अपने जीवादिकपंच पहाड़ियोंका प्रदेश जान पड़ता है ५ और अन्तिम विपयाका संतापजनक उत्तर पाकर उनके शिष्य वन म्टेशन पावापुरका मुन्दर उद्यान है। गजगृही में उस गये थे पार जिन्हान अपन वहुनम शिष्योंके माध वक्तराजा श्रेणिक गज्य करता था, जिस बिम्बमार भी भगवान जिनदीना लली थी। अस्तु । कहते हैं। उसने भगवानकी परिपदामें- समवमरण ___नीम वर्पक लम्ब विहारका ममात करत और कनमभाओं में- प्रधान भाग लिया है और उसके कृत्य होते हुए, भगवान महावीर जब पावापुरकं एक प्रश्नों पर वहुतमे रहस्योका उद्घाटन हुआ है । श्रेणिक मुन्दर उद्यानमें पहुँचे, जो अनेक पद्ममगेवरों तरा नाना प्रकारके वृक्षममूहा से मंडिन था, तब आप वहाँ - आप जम्भका ग्रामक मजुकूला नटम चनकर पहले डी प्रदशमें पाए है । इमाम धीपज्यपादाचार्यने यापकी कवल बातो कायात्मगस स्थिन हागय और आपने परम शुक्लन्यान न्पत्तिके उस कथनके अनन्तर जो अपर दिया गया है अापके वैभा के द्वारा योगनिगंध करकं दग्वरज-ममान अवशिष्ट पर्वतपर पानेकी बात कही है और नीम आपके तीम वर्षक रहे कर्म रजको-अघातिचतुष्टय को-भी अपने विहान्की गणना की है । यथा---- आन्नासे पृथक कर डाला, और इस तरह कार्तिक “अथ भगवान्मम्प्रापद्दिव्य वभारपर्वत रम्य । वदि अमावस्याके अन्तमें, स्वाति नक्षत्रके समय, चातुर्वर्य-मुमघस्नत्रामृत गौतमप्रभृति ॥१३॥ निर्वाण पदको प्राप्त करके आप सदाके लिये अजर, "दशविधमनगाएणामकादशवोनर तथा धर्म । दशयमानी व्यहरत् त्रिंशद्वर्ष ग्यथ जिनेद्रः ॥१५॥ -निर्वाणभक्ति। x कुछ श्वेताम्बरीय प्रांथानुसार 'मातुलजा'-मामूजाढ बहन ।Page Navigation
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