Book Title: Anangpavittha Suttani Bio Suyakhandho
Author(s): Ratanlal Doshi, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 693
________________ 1284 अनंगपविट्ठसुत्ताणि मक्खिएणं पारिट्ठावणियागारेणं महत्तरागारेणं सव्वसमाहिवत्तियागारेण वोसिरीमि ॥१०॥(पच्चक्खाणपारणविही-उग्गए सूरे णमुक्कारसहियं 'जाव पच्चक्खाणं कयं तं सम्मं कारण फासियं पालियं सोहियं तीरियं किट्टियं आराहियं अणुपालियं भवइ जं च ण भवइ तस्स मिच्छामि दुक्कडं ।)णमोऽत्थु णं अरिहंताणं भगवंताणं आइगराणं तित्थयराणं सयंसंबुद्धाणं पुरिसुत्तमाणं पुरिससीहाणं पुरिसवरपुंडरियाणं पुरिसवरगंधहत्थीणं लोगुत्तमाणं लोगणाहाणं लोगहियाणं लोगपईवाणं लोगपज्जोयगराणं अभयदयाणं चक्खुदयाणं मग्गदयाणं सरणदयाणं जीवदयाणं बोहिदयाणं धम्मदयाणं धम्मदेसयाणं धम्मणायगाणं धम्मसारहीणं धम्मवरचाउरंतचक्कवट्टीणं, द (वों)वता(ण). णसरणगइपइट्ठाणं अप्पडिहयवरणाणदंसणधराणं वियदृट उमाणं जिणाणं जावयाणं तिण्णाणं तारयाण बुद्धाणं बोहयाणं मुत्ताणं मोयगाणं सव्वण्णूणं सव्वदरिसीणं सिवम. यलमरुयमणंतमक्खयमव्वाबाहमपुणरावित्ति सिद्धिगइणामधेयं ठाणं संपत्ताणं णमो जिणाणं जियभयाणं ठाणं संपाविउका(मस्स)माणं] // इइ छळं पच्चक्खाणावस्सयं समत्तं // 6 // ॥आवस्सयसुत्तं समत्तं // // बत्तीसं सुत्ताइं समत्ताइं॥ अनंगपविद्वसुत्ताणि समत्ते 1 एएसिं दसण्हं पञ्चक्खाणाणं अण्णयरं पच्चक्खाणं पचविखत्ता सामाइयमाइयाणं छण्हमावस्सयाणमइयारसंबंधिमिच्छामि-दुक्कडं दच्चा दुवखुत्तो 'णमोऽत्थु णं० दाहिणं जाणुं भूमीए संठवित्तु वामं जाणु उडूं किच्चा पंजलिउडेण पढिज इ / राइए पच्चक्खाणे जहाधारणत्ति विसेसो / 2 अरिहापक्खे / 3 पच्चंतरे छडावस्सयपच्छा एसो पाढोऽहिगो लब्भइ-इच्छाकारेण संदिसह भगवं अ०अभितरं देव सियं खामेउ इच्छं खामेमि देवसियं जं किंचि य अपत्तियं प० भत्तपाणे विणए वेयावच्चे आलावे संलावे उच्चासणे समासणे अंतरभासाए अपरभासाए जं किंचि मज्झं विणयपरिहीणं सुहुमं (थोवं) वा बायरं (बहुं) वा तुम्मे जाणह अहं ण जाणामि तस्स मिच्छामि दुकडं / 4 सावयावस्सयविसए परिसिटुं दट्ठव्वं /

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