Book Title: Anangpavittha Suttani Bio Suyakhandho
Author(s): Ratanlal Doshi, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text ________________ 34 पढम परिसिढें व्वुए // 20 // तेणं कालेणं तेणं समएणं उसमे णं अरहा कोसलिए जे से गिम्हाणं च उत्थे मासे सत्तमे पक्खे आसाढबहुले तस्स णं आसाढबहुलस्स चउत्थीपरखेणं सबट्ठसिद्धाओ महाविमाणाओ तित्तीसं सागरोवमट्ठिइयाओ अणंतरं चयं चइत्ता इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे इक्खागभूमीए णामिकुलगरस्स मरुदे(या)वीए भारियाए पुबरत्तावरत्तकालसमयंसि आहारवक्कंतीए जाव गभत्ताए वक्कते।२०६। उसभे णं अरहा कोसलिए तिण्णाणोवगए यावि हुत्था, तंजहा-चइस्सामित्ति जाणइ जाव सुमिणे पासइ, तंजहा-गय-वसह० गाहा / सव्वं तहेव, णवरं पदमं उसमें मुहेणं अइंतं पासाइ, सेसाओ गयं / णाभिकुलगरस्स सा(ह) हेइ, सुविणपाढगा णत्थि, णाभिकुलगरो सयमेव वागरेइ // 207 // तेणं कालेणं तेणं समएणं उसमे णं अरहा कोसलिए जे से गिम्हाणं पढमे मासे पढमे पक्खे चित्तबहुले तस्स णं चित्तबहुलस्स अट्ठमीपक्खेणं णवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं अट्ठमाणं राइंदियाणं जाव आसाढाहिं णक्खत्तेण जोगमुवागएणं आरोग्गारोग्गं दारयं पयाया // 208 / / तं चेव सव्वं जाव देवा देवीओ य वसुहारवासं वासिंसु, सेसं तहेव चारगसोहणमाणुम्माणव(द्ध)ट्टण उस्सुकमाइयट्टिइवडियजयवज्जं. सव्वं भाणियत्वं // 209 / / उसभे णं अरहा कोसलिए कासवगुत्तेणं, तस्स णं पंच णामधिजा एवमाहिज्जंति, तंजहा-उसभेइ वा, पढमरायाइ वा, पढमभिक्खायरेइ वा, पढमजिणेइ वा, पढमतिर(थंक) थयरे इ वा // 210 // उसमे णं अरहा कोसलिए दक्खे दक्खपइण्णे पडिरूवे अल्लीणे भद्दए विणीए वीसं पुव्वसयसहस्साई कुमारवासमज्झे वसइ बसित्ता तेवढिं पुव्वस यसहस्साई रजवासमझे वसइ, तेवद्धिं च पुव्वसयसहस्साइं रजवासमज्झे वसमाणे लेहाइयाओ गणियप्पहाणाओ सउणरुयपज्जवसाणाओ बावत्तरि कलाओ चउसद्धिं महिलागुणे सिम्पसंयं च कम्माणं तिण्णि वि पयाहियाए उवदिसइ उवदिसित्ता पुत्तसय रजसए अभिसिंचइ अभिसिंचित्ता पुणरवि लोयंतिएहिं जीयकपिएहिं देवेहिं ताहिं इट्ठाहिं जाव वग्गूहिं सेसं तं चेव सव्वं भाणियव्वं जाब दाणं दाइयाणं परिभाइत्ता जे से गिम्हाणं पढमे मासे पढमे पक्खे चित्तबहुले तस्म णं चित्तबहुलस्स अट्ठमीपक्खेणं दिवसस्स पच्छिमे भागे सुदंसणाए सिवियाए सदेवमणुयासुराए परिसाए समणुगम्ममाणमग्गे नाव विणीयं रायहाणिं मज्झमझेणं णिग्गच्छइ णिग्गच्छित्ता जेणेव सिद्धत्थवणे उजाणे जेणेव असोगवरपार वे तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता असोगवरपायवस्स अहे जाव सयमेव चउहिय लोयं
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