Book Title: Anandsamucchayo Nam Yogshastram Author(s): Shilchandrasuri Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 2
________________ मार्च २००८ कोई विलक्षण साधक ज करी शके. आ विषयना तद्दन अनभिज्ञ एवा मारा जेवा ते काम नहि. परन्तु एक वात कही शकुं के मारी अल्पस्वल्प समजण अनुसार, आ ग्रन्थमा जे क्रमथी, जे विशदतापूर्वक, जे योगविषयक पदार्थो तेमज प्रक्रियानुं निरूपण थयुं छे, ते अन्यत्र क्याय, होय तो पण, अद्यावधि जोवा-जाणवामां आवेल नथी. अमनस्कयोग, गोरक्षसंहिता, घेरण्डसंहिता इत्यादि ग्रन्थोमां आ विषयो, प्रतिपादन होय तो ते संभवित गणाय. नाथ-परम्परामां अथवा तो गोरखवाणीमां आ विषयो प्रख्यात होवा ज जोईए. श्री मकरन्द दवेना एक पुस्तकमां हमणां ज एक कण्डिका जोवा मळी. गोरखनाथनी कृति छे : "सोलह कला चन्द्र प्रकासा, बारहकला भाणं अनंतकला सिद्धों का मेला, रह गया पद निर्वाणं" प्रस्तुत ग्रन्थना ५-६ प्रकरणनो विषयसंकेत ज आमां मळे छ ! समग्र ग्रन्थ आठ प्रकरणोमां निबद्ध - वहेंचायेलो छे. तेनां नामो क्रमशः आ प्रमाणे छे : १. स्थान प्रकरण; २. नाडी प्रकरण; ३. मन्त्रप्रभाव प्रकरण; ४. ध्यानभेद प्रकरण; ५. चन्द्रकर्म प्रकरण; ६. सूर्यकर्म प्रकरण; ७. सिद्धि प्रकरण; ८. मुक्ति प्रकरण. कुल २८० जेटला श्लोकोमा पथरायेलो आ ग्रन्थ छे. प्रारम्भना ११ श्लोको प्रस्तावना जेवा छे, जेमा मङ्गल, गुरुपरम्परा दर्शावीने ग्रन्थरचनानो हेतु बताव्यो छे (श्लोक ९) : "योगशास्त्रो तो सेंकडो छे, पण केटलाय शास्त्रोमां स्पष्ट अर्थो नथी; केटलांकमां स्पष्टता छे, तो पण सम्पूर्णता के पूर्णतः स्पष्टता नथी. तेथी हुं लीलामात्ररूपे आवी खोट दूर करतुं आ शास्त्र रचुं छु." तो १०-११मां पद्योमां कर्ता आ शास्त्र, साफल्य आ रीते वर्णवे छे : "बुद्धिमान् वादीओमां बीजी कोई पण बाबतमा प्रायः संवाद भले न सधातो होय, परन्तु, जो मोक्षमार्ग प्रत्ये आस्था होय तो, आवा अध्यात्मपरक प्रतिपादनमां लेश पण विसंवाद न ज थाय, अरे ! मोक्षमार्गना सहज शत्रु मनाता नास्तिको पण आ शास्त्रना उपदेशना अमलथी अनुभवाता प्रत्यक्ष लाभो विषे, अथवा ते लाभो थवाथी आ योगमार्ग विषे श्रद्धावंत थवाना ज." Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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