Book Title: Anand Pravachan Part 12 Author(s): Anand Rushi, Shreechand Surana Publisher: Ratna Jain PustakalayaPage 17
________________ ( १४ ) ४८-६३ आत्मबल : धर्मबल की फलश्रुति ३८, भागवत-पुराण में वर्णित गज-ग्राह का दृष्टान्त ४०, आत्मबल या परमात्मबल का मूलस्रोत : धर्मबल ४१, धर्मबल द्वारा सुषुप्त आत्मबल का प्रकटीकरण ४२, धर्मबल कहाँ-कहाँ और किस-किस रूप में ? ४४, त्याग की शक्ति के रूप में धर्मबल ४४, तप के रूप में धर्मबल ४५, धर्मबल : श्रद्धा-विश्वास के रूप में ४५, धर्मबल : श्रद्धा-भक्ति के रूप में ४६, देवयानी और कच का दृष्टान्त ४६ । ८४. सर्वसुखों में धर्मसुख उत्कृष्ट धर्मसुख से भिन्न सुख : कौन-कौन से, कैसे और किन में ? ४८, बाह्य वस्तुओं में सुख की खोज : भ्रम है ४६, व्यक्ति-विशेष में सुख को केन्द्रित करना : अज्ञान ४६, स्त्री में सुख नहीं ५०, संतान का सुख : एक मृगतृष्णा ५१, धन की प्रचुरता सुख का कारण नहीं ५२, इन्द्रिय-विषयों की तृप्ति में सुख मानना भ्रम ५३, मानसिक सुखों का भ्रमजाल ५५, सांसारिक सुख और पारमार्थिक सुख ५६, धर्मसुख : सभी सुखों से श्रेष्ठ : क्यों और कैसे ? ५७, धर्मसुख के चार आधार ५६, आत्मशुद्धि : धर्मसुख का प्रमुख आधार ६०, त्यागवृत्ति : धर्मसुख का द्वितीय आधार ६१, अहंकारशून्यता : धर्मसुख का तृतीय आधार ६२, सहिष्णुता : धर्मसुख का चतुर्थ आधार ६२ । ८५. धूत में आसक्ति से धन का नाश सात व्यसनों का क्रम एवं नाम ६४, द्यूतक्रीड़ा क्यों प्रारम्भ हुई ? ६५, जूआ क्या है, क्या नहीं ? ६६, जूए के मूल में मनोवृत्ति ६८, जुआरी में इतनी दूरदर्शिता कहाँ ? ६८, जूए का धन : रहता कितने क्षण ? ६६, जूए के साथ लगे अन्य दुर्गुण ७१, जूआ : धर्म का शत्र ७२, परीक्षित का दृष्टान्त ७२, जूआ : निर्दयता एवं कठोरता का जनक ७३, जूआ : नैतिक धन का विनाशक ७४, सामाजिक जीवन की क्षति ७७, चूत का विशाल परिवार ७६, जूए से आत्मिक धन का नाश ८०। ६४.-८१ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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