Book Title: Amar Vani
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 4
________________ प्रकाशकीय श्री सन्मति ज्ञानपीठ के जिस अमर प्रकाशन की पाठक-गण चिरकाल से अपलक प्रतीक्षा कर रहे थे; आज उसे उनके करकमलों में अर्पित करते हुए हर्ष एवं उल्लास से मेरा रोम - रोम पुलकित हो रहा है । ज्ञानपीठ के प्रकाशनों में इस प्रकाशन का सर्वोपरि स्थान है-ऐसा मैं अधिकार की भाषा में कह सकता हूँ। __ वैज्ञानिक नीलाम्बर के नीचे आज सैकड़ों वैज्ञानिक पृथ्वी को पढ़ रहे हैं, और खोज कर रहे हैं कि पृथ्वी के अन्तर में कोयला कहाँ है ? लोहा कहाँ छिपा पड़ा है ? सोने-चांदी और हीरे जवाहरात की खानें कहाँ दबी पड़ी हैं ? पैट्रोल और तेल के स्रोत कहाँ बह रहे हैं ? सैकड़ों वैज्ञानिक आकाश को पढ़ रहे हैं और देख रहे हैं कि कौन ग्रह कब उदय हो रहा है और कब अस्त हो रहा है ? आकाश - मंडल में कौन-सा ग्रह नया आ रहा है और संसार पर उसकी क्या प्रतिक्रिया होने वाली है ? सैकड़ों वैज्ञानिक समुद्र को पढ़ रहे हैं और पानी की एक-एक बूंद को तोड़कर देखा जा रहा है, उसमें कितनी एटम शक्ति है और कितनी विद्युत् शक्ति है ? । इस प्रकार मनुष्य के द्वारा आज पृथ्वी को पढ़ा जा रहा है, आकाश को खोजा जा रहा है और समुद्र को मथा जा रहा है। पर, खेद है कि वह सब - कुछ करके भी आज का मनुष्य अपनेआपको भूल रहा है और सब-कुछ पढ़कर भी मनुष्य आज अपने विषय में ही अनविज्ञ है। यह कैसी विचित्र लीला है आज के मनुष्य की ! जीवन की यह कैसी बिडम्बना है कि सब-कुछ देखपढ़ कर भी मनुष्य अपनी ओर से आँखें बन्द किये चल रहा है ? और, जब तक मनुष्य अपने आपको न पढ़े, अपने आपको न खोजे; तब तक इस बाहर की पढ़ाई का जीवन में अर्थ ही क्या है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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