Book Title: Ahimsa Vyakti aur Samaj
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 6
________________ नया कदम अहिंसा जीवन का नाभिक है। यह केवल धर्म और अध्यात्म की बात नहीं है समाज और राजनीति भी इसके बिना अर्थ-शून्य है। इसका एक सिरा जहां अपरिग्रह से जुड़ा हुआ है, वहां दूसरा सिरा परिग्रह से भी जुड़ा हुआ है। इसमें कोई शक नहीं कि अर्थ जीवन की अनिवार्य अपेक्षा है । यद्यपि कुछ संन्यासी लोगों को पैसे की आवश्यकता नहीं होती, पर वे भी पदार्थ-मुक्त जीवन तो नहीं जी सकते । शरीर है तब तक उसका पोषण अनिवार्य है। बहुत प्राचीन काल में पदार्थ और आदमी के बीच में सिक्का नहीं था। पदार्थ का विनिमय ही एक-दूसरे की आवश्यकता को परिपूर्त करता था। धीरे-धीरे वह व्यवस्था घिस गई और सिक्का जीवन में इस तरह विराजमान हो गया कि वही जीवन का ध्येय बन गया । यह भी सही है कि प्रारम्भ में सिक्के ने समाज को गतिशील बनाया था। पर धीरे-धीरे उसके चारों ओर परवशता का ऐसा सिकंजा कस गया कि न केवल उसका एक शास्त्र ही बन गया अपितु उसके कारण समाज भी अनेक विसंगतियों से घिर गया । आज अर्थशास्त्र जिन अवधारणाओं को लेकर आगे बढ़ रहा है उससे मनुष्य की समस्याएं और अधिक उलझ रही है । एक ओर पूंजीवाद का पेट मोटा हो रहा है तो दूसरी ओर गरीब का पेट इतना पिचक गया है कि जीवन ही संकटग्रस्त हो गया है । गरीबी और भीमरी की खाई तो चौड़ी हुई ही है, पर जीवन ही इतना कट-फट गया है कि एक नई अर्थनीति को रेखांकित करना अनिवार्य हो गया है। अणुव्रत चूंकि अहिंसा का एक सशक्त आन्दोलन है, अपरिग्रह की प्रतिष्ठा के बिना उसे संस्थापित नहीं किया जा सकता, अत: यह आवश्यक हुआ कि उसकी ओर से एक नई अर्थनीति को परिभाषित किया जाये । अणुव्रत का घोष है-संयम : खलु जीवनम् । इस दृष्टि से उसकी ओर से प्रस्तावित अर्थनीति का केन्द्र संयम रहे यह स्वाभाविक है । संयम को प्रोत्साहित करने के लिए समय-समय पर अनेक लोगों ने अपने स्तुत्य प्रयास किए हैं। अणुव्रत उन सब प्रयत्नों को ध्यान में रखकर ही नये अर्थशास्त्र को परिभाषित करने की कौशिश कर रहा है। अणुव्रत अनुशास्ता आचार्य श्री तुलसी एवं अणुव्रत-दर्शन के प्राणप्रतिष्ठापक युवाचार्यश्री महाप्रज्ञ एक अध्यात्म-पुरुष हैं, अतः अर्थ-चर्चा उनके लिए सीधी प्रासंगिक नहीं बनती, पर जब अणुव्रत की भूमिका पर दृष्टिपात Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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