Book Title: Ahimsa Vyakti aur Samaj Author(s): Mahapragna Acharya Publisher: Jain Vishva Bharati View full book textPage 4
________________ आशीर्वचन जिस पुरुष ने अहिंसा का आविष्कार किया, वह दुनिया का महान् वंज्ञानिक अथवा सबसे बड़ा वैज्ञानिक था । अहिंसा है तो सत्य की खोज चलती है। वह नहीं है तो खोज का दरवाजा ही बन्द हो जाता । जीवन में हिंसा की अनिवार्यता है, इसे सब लोग जानते हैं किन्तु जीवन में अहिंसा की अनिवार्यता है, इसे बहुत कम लोग जानते हैं । अहिंसा के सिद्धांत को व्यापकता देने का अर्थ है, इस सचाई को विस्तार देना कि अहिंसा सबसे अधिक अनिवार्य है। यदि सब मनुष्य केवल हिंसा से जीना प्रारंभ करे तो संभवतः कोई नहीं बचे । समाज इसीलिए चलता है कि उसमें हिंसा की अपेक्षा अहिंसा का व्यवहार अधिक है। व्यक्ति इसीलिए जीवित है कि उसके जीवन में हिंसा की अपेक्षा अहिंसा के तत्त्व अधिक हैं । कोई भी व्यक्ति चौबीस घंटा हिंसा नहीं करता। वह जीवन की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए हिंसा का सहारा लेता है किन्तु संकल्पपूर्वक हिंसा से बचता रहता है। इसीलिए समाज में अपराध की अपेक्षा अपराध-हीनता का वातावरण अधिक है। आज के संचार माध्यमों और मनोरंजन के साधनों ने हिंसा को अधिक उद्दीपन दिया है और वे देते जा रहे हैं । इस स्थिति में अहिंसा का सशक्त वातावरण निर्मित नहीं किया गया तो समाज में जंगली जानवरों की स्थिति पैदा हो जाएगी। जैन विश्व भारती मान्य विश्वद्यालय ने अहिंसा एवं शान्ति शोध (Non Violence and Peace resarch) का विभाग स्थापित कर अहिंसा को विस्तार देने की दिशा में अपना चरण आगे बढ़ाया है । आचार्यश्री तुलसी ने अहिंसा प्रशिक्षण के सिद्धांत का प्रतिपादन कर जनमानस को जागत करने का प्रयत्न किया है । आक्रमण, छीना-झपटी, अप्रामाणिकता, अनैतिकता, लूट-खसोट और प्रवंचना के वातावरण में इसकी बहुत अपेक्षा है। अपेक्षा हैव्यक्तियों में बुराइयों को तिरोहित कर अच्छाइयों को उभारा जाए। अहिंसा के क्षेत्र में भगवान महावीर, भगवान् बुद्ध से लेकर आज तक अनेक महापुरुषों ने कार्य किया है। पुस्तक में महात्मा गांधी, आचार्य तुलसी, जयप्रकाश नारायण, विनोबा आदि अनेक अहिंसा के चिन्तकों का चिन्तन संकलित है । इसका संकलन मुनि सुखलालजी ने किया है। यह अहिंसा एवं शांतिशोध में रुचि रखने वालों के लिए बहुत उपयोगी सिद्ध होगा। १ फरवरी, ६२ जैन विश्व भारती, लाडनूं (राज.) -युवाचार्य महाप्रज्ञ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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