Book Title: Ahimsa Vani 1952 08 Varsh 02 Ank 05
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Jain Mission Aliganj

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Page 6
________________ स्वाधीनता-सूक्ति-सञ्चयन "सच्चा स्वराज्य तो अपने मन पर राज्य है । उसकी कुंजी सत्याग्रह, आत्म-बल अथवा दया-बल है। इस बल को काम में लाने के लिए सदा स्वदेशी बनने की जरूरत है।" -महात्मा गाँधी __"स्वराज्य का अर्थ है अपने पर काबू रखना, यह वही पुरुष कर सकता है जो दूसरों को धोका नहीं देता, माता-पिता, स्त्री-बच्चे नौकर-चाकर, पड़ौसी सब के प्रति अपने कर्तव्य का पालन करता है ।" -महात्मा गाँधी "हिसा से राज्य मिलेगा, पर स्वराज्य मिलेगा अहिंसा से।" -विनोवा "स्वतंत्रता राष्ट्रों का शाश्वत यौवन है।" --फौय "जब हम यह कहते हैं कि हम स्वतन्त्रता को सर्वोपरि स्थान देते हैं तो उसका क्या अर्थ होता है ? मैं बहुधा विस्मत हुआ करता हूँ कि हम । अपनी कितनी अधिक आशाएं-आकांक्षाएं संविधानों, कानूनों और न्यायालयों -- पर लगाये रहते हैं। स्वतन्त्रता तो स्त्री-पुरुषों के हृदत की चीज है; जब यह वहाँ निर्जीव हो जाय तो कोई भी संविधान, कानून और न्यायालय उसकी रक्षा नहीं कर सकता....... ___ "और यह स्वतन्त्रता है क्या ? यह निर्मम अनियन्त्रित इच्छा का नाम नहीं है; यह मनमानी करने की आजादी भी नहीं है । वह तो स्वतन्त्रता का प्रतिषेध है और उसका सीधा परिणाम उसका विनाश है । जिस समाज में मनुष्य अपनी स्वतन्त्रता पर कोई नियन्त्रण या मर्यादा नहीं मानते उसमें स्वतन्त्रता शीघ्र ही कुछ शक्ति-शालियों के हाथ का खिलौना बन जाती है; यह हमारा खेदजनक अनुभव है। "हाँ, तो फिर स्वतन्त्रता की भावना क्या है ? मैं इसका निरूपण नहीं कर सकता, मैं तो आपको केवल अपनी सम्मति बतला सकता हूँ । स्वतन्त्रता की भावना ऐसी होती है जिसमें निश्चित रूप से यह नहीं कहा जा सकता कि यही बात ठीक है; स्वतन्त्रता की भावना वह होती है जिसमें अन्य स्त्रीपुरुषों के हृदय को समझने की चेष्टा की जाती है; स्वतन्त्रता की भावना उसे कह सकते हैं जिसमें निष्पक्ष भाव से अपने स्वार्थ के साथ दूसरों के स्वार्थ का भी ध्यान रखा जाता है; स्वतन्त्रता की भावना में एक छोटी सी चिड़िया भी पृथ्वी पर गिरती है तो उसकी ओर भी हमारा ध्यान जाता है; स्वतन्त्रता की भावना उस ईसामसीह की भावना है जिसने लगभग [शेषांश पृष्ट ८ परदेखिये ]

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