Book Title: Ahimsa Vani 1952 08 Varsh 02 Ank 05
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Jain Mission Aliganj

View full book text
Previous | Next

Page 5
________________ हिसा परमोशन अगस्त __ वर्ष २ । “जो भरा नहीं है भावों से, बहती जिसमें रसधार नहीं। अङ्क ५ | वह हृदय नहीं है पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं ॥"-गुप्त । १९५२ मातृ-शक्ति ! (श्री कल्याण कुमार जैन 'शशि' ) निबल हुई है बल खो के आज मातृ-शक्ति, ___ भारत बसुन्धरा का नत हुआ माथ है । शौर्य शक्ति, बल, तेज, साहस का ह्रास हुआ, क्लेश-कष्ट, रोग-शोक पग-पगं साथ है। अपने महान पृथ-दर्शन को भूल कर, .. कल की सनाथ आज हो गई अनाथ है। जीवन जगाया तुमने ही देश में सदैव, फिर लाज भारत की आप के ही हाथ है ॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 ... 144