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* स्वतन्त्रता दिवस के
२६ जनसंख्या जब पर्दे के पीछे पड़ी हिन्द चीन, व्युनीशिया, कोरिया या रहेंगी और उससे होने वाली संतान और दूसरे अफ्रीकी एवं एशियाई भी तो जब वैसी ही पिछड़ी ही होगी देश विदेशियों के पैरों के नीचे बरी तो भला क्या खाक उन्नति होगी? तरह दले मले जा रहे हैं जब रूस अछूतों और पिछड़ी जातियों की चीन स्वतंत्र होकर अपने पैरों पर समस्या भी अभी ज्यों को त्यों वहीं खड़े होने की हिम्मत, तो कर सके पड़ी है जहाँ महात्मा गांधी छोड़ कर हैं। हम भी स्वतंत्र हुए हैं और अपने चले गए । बातें तो लोग बहुत बड़ी- पैरों पर खड़े होने की आशा करते हैं बड़ी करते हैं पर शक्ति के मद में यही संतोष है। मतवाले ये लोग सचमुच नीचे वालों
वालों कोई भी व्यापक सुधार किसी को जल्दी ऊपर उठने नहीं देना भी देश में देश की सरकार या राज्य चाहते । आज भी अधिकतर विद्या- 'शासन' या राज्य सत्ता के सहयोग लयों से पचहत्तर फी सदी ऊँची से ही होता है यही संसार का इतिजातियों के लड़के ही पढ़ लिख कर हास कहता है। जनता आन्दोलन परीक्षाओं में उत्तीर्ण होते हैं। कुछ करती रह जाती है पर यदि राज्य एक स्कारलरशिप दे देने से तो कुछ सत्ता कुछ नहीं करती तो कुछ होने जाने का नहीं । ये ही सब नहीं होता । भले ही जनता बाद में समस्याएँ हैं जिनका समाधान न बिगड़ कर राज्य सत्ता को उलट कर पहली पंचवर्षीय योजना में है न स्वयं शासन अपने हाथ में ले ले और
आगे ही कोई उम्मीद दीख पड़ती है। तब सत्ता की मदद से जो चाहे करे फिर ऐसे स्वतंत्रता दिवस कितने भी तो उसमें भी सत्ता पहले हाथ में क्यों न आवे जायँ, हम शक्ति संपन्न आने पर सत्ता की सहायता से ही लोगों के प्रभाव में भूखे रह कर भी आगे कुछ हो पाता है। जैसे फ्रान्स, खुशियाँ भले ही मना लें पर जब तक अमेरिका, रूस वगैरह में हुआ। हमारा दुख, हमारी दुश्चिताएँ, हमारा अमेरिका वगैरह में गुलामी का अंत व्यापक आर्थिकशोषण एवं सामाजिक भी राज्य सत्ता की सहायता एवं विभिन्नताएँ दूर नहीं होती हमारे लिए सहयोग द्वारा ही संभव हुआ। दूसरे तो सब कुछ खोखला ही रह जाता श्रमिकों वगैरह की भलाई के कानून है। फिर भी ऐसी स्वतंत्रता से उन्नति भी इसी तरह बने । आज भी साउथ • करने का और व्यवस्थाओं में सुधार अफ्रिका में न जाने कितने दिनों से
करने की काफी स्वतंत्रता देश को . आन्दोलन चलते रहने के बावजूद मिली है और हम चाहें तो बहुत कुछ भी भारतीय और अफ्रीकी “गोरों" हो सकता है। आज भी मलाया, के साथ बैठने का अधिकार नहीं पा