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* स्वतन्त्रता दिवस * स्वास्थ्य में पचीस वर्ष लग जायँगे। कुछ किया भी हैं। पर हमारे कष्ट पर यदि भ्रष्टाचार दूर नहीं हुआ तो इतने बड़े हैं कि हमारी सरकार की मेरा ख्याल है कि पचीस वर्ष क्या सुस्त प्रगति उनके सामने कुछ भी सौ वर्ष में भी कुछ होना संभव नहीं ऐसा नहीं कर पाती जिससे गरीबों होगा। गरीब विचारा तब भी रोता को थोड़ी राहत मिले और आगे के ही रह जायगा-भले ही देश का लिए उम्मीद और संतोष हो। उत्पादन और देश में समृद्धि की हर चीन भी जब तक पूंजीवादी देशों
ओर वृद्धि हो जाय । कुछ लोग मौज के प्रभाव, संरक्षण और "चक्कर" करते रहेंगे और बाकी उनकी ओर में पड़ा रहा वहाँ की आम जनता देख देखकर तरसते. और किसी दुख भोगती ही रही। जब से वहाँ “निर्गरण सगुण" भगवान को गुहराते नई व्यवस्था बनी है तीन ही वर्षों में रहेंगे।
पचीसों वर्षों का काम हो गया। आज ___ भला धन और शक्ति वाला भी वहाँ अधिक से अधिक जनता भविष्य कहीं अपना धन और शक्ति स्वयं के लिए पूणे आशावान और वर्तमान में अपनी खुशी से छोड़ता है ? विनोवा उत्साह शील है। हमारे भारत में लोग जी ने "भू दान यज्ञ" नाम का काम "लैण्डआर्मी" बनाने की बातें करते उठाया है-पर क्या इससे हमारी हैं पर यह नहीं सोचते कि जहाँ एक समस्याएँ कभी भी सुलझेगी ? दान ब्यक्ति के पास सौ एकड़ जमीन है देना, दान लेना, दाता और भिक्षुक और दूसरे के पास एक एकड़ भी की रीति ही तो पंजीवादी व्यवस्था नहीं वहाँ जिनके पास जमीन नहीं को सदृढ़ बनाए रखने का सबसे बड़ा उनमें कैसे उत्साह उत्पन्न हो सकता यन्त्र है। इसके लिए तो सरकारी है ? चीन में एक नदी को बाँध बनाने कानून द्वारा ही व्यवस्था में सुधार के लिए बीस लाख आदमी खुशीलाकर कुछ प्रभावकारी रूप से होना खुशी काम में भिड़ गए, यहाँ लोग संभव है। हाँ, जब तक पूंजीवादी ताज्जुब करते हैं कि भारत में ऐसा व्यवस्था कायम है इस तरह के दान क्यों नहीं होता ? कैसे हो? वहाँ वगैरह से एकदम कुछ नहीं से थोड़ा जमीन सब की है-बाँध से लाभ सा लाभ किसी हालत में फिर भी होगा तो सब को होगा। यहाँ तो वह हो ही जाता है। विवशता है। जो . बात नहीं। किसी भी काम में सच्चा बन पड़े, जो कुछ थोड़ा भी हो जाय एवं स्थाई उत्साह होने के लिए वही सही-वही ठीक। यों तो हमारी अपना हित भी कुछ होना आवश्यक वर्तमान सरकार भी सोई हुई नहीं है, है। उद्योग धंधों को ही लीजिए। जागरुक है और कुछ कर रही है। मजदूरों को बँधी मजदूरी मिल जाती