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* हिंसा-वाणी
पूज्याचार्य श्री महावीर प्रसाद द्विवेदी के अनुसार कविता का एक चरण क्या एक शब्द ही सुन्दर बन पड़ने पर सारी रचना को चमका देता है । अतः 'उदय' खण्डकाव्य, अपनी कमियों के रहते हुये भी अच्छा बन पड़ा है किन्तु अन्तिम नहीं हो सकता । उदय जैसी दिवंगत श्रात्मा के आधार पर कवि और लेखक बहुत कुछ लिखेंगे । पर इससे भी कवि की रचना का मूल्य घटता नहीं प्रस्युत बढ़ने की ही संभावना है । - सूरज साहय शर्मा १व२ )
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मानव विकास की ओर ( भाग
सम्पादक - मुन्शी मोतीलाल जी का
प्रकाशक
व्यवस्थापक सुख साधन माला, ब्यावर
पृष्ठ संख्या ११६ + २४८= ३६४
मूल्य १ + २ = ३) छपाई -सफाई, श्राकार-प्रकार की दृष्टि से इस पुस्तक के उभय भाग सुन्दर हैं । शीर्षक के अनुरूप ही पुस्तक का विषय है, जो कि स्वाभाविक भी है। यह संकलन मात्र है । इसमें उच्च कोटि के विचारकों, महात्माओं एवं विद्वानों के विचार, भाषण, लेख एवं उनकी अन्य कृतियाँ संग्रहीत है । संकलन में रुचि परिष्कार का ध्यान रखा गया है ।
यह संग्रह मानवता के नवीन विकास में, सर्वोदयतीर्थ के युवकों के चरित्र के निर्माण में विशेष उपयोगी सिद्ध होगा- ऐसा हमारा ग्रन्थ प्रकाशन के लिए सम्पादक एवं प्रकाशक बधाई के पात्र हैं।
नवनिर्माण की
सम्पादक एवं प्रकाशक--श्री मुंशी मोतीलाल रांका व्यावस्थापक-सुख साधान ब्यावर
संस्थापन में एवं विश्वास है । - वी० प्र०
मूल्य
पृष्ठ २०
प्रस्तुत पुस्तिका में 'नव-निर्माण' को दृष्टि में रखते हुए कुछ सुन्दर रचनाओं का संकलन किया गया है । - वी० प्र०
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तत्वार्थ
सूत्र (विवेचन सहित )
विवेचन कर्ता - प्रज्ञाचक्षु पं० सुखलाल जी संघवी
प्रकाशक - प्रो० दलसुख मालवणिया, मन्त्री
जैन संस्कृति संशोधन मण्डल, हिन्दू विश्वविद्यालय, बनारस - ५
मूल्य पाँच रुपया, आठ आना : पृष्ठ संख्या ४१० : पुट्ठे की मजबूत जिल्द 'तत्वार्थ सूत्र' का महत्व दर्शन-जगत में असाधारण है । स्वामी उमास्वाति कृत यह ग्रन्थ-रत्न जैन समाज में गीता-रामायण की तरह लोकप्रिय है । स्वाध्याय प्रेमी जन इसका स्वाध्याय करते हैं प्रस्तुत ग्रन्थ में प्रज्ञाचक्षु पं० सुखलाल जी संघवी ने सूत्र जी की विस्तृत विवेचना की है जो सारगर्भित है सन् १६३० में इस ग्रन्थ का मुद्रण ( शेषांश पृष्ठ ३७ वें पर )