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दूध का दूध पानी का पानी
साहित्य-समीक्षा
शहीद गाथा भाग १-२ . . रचयिता-श्री धन्यकुमार जैन 'सुधेश सम्पादक-श्री नर्मदा प्रसाद खरे
प्रकाशक-सं० सि• सुरेशचन्द्र जैन, मन्त्री मध्यप्रदेशीय जैन सभा जबलपुर ।
पुस्तक का श्रावरण पृष्ठ तो जैसे मुखरित ही हो उठा है। मुख्य पृष्ठ के दृश्य की सजीवता के समक्ष शीर्षक देने की भी आवश्यकता न थी। प्रेस की छपाई, सुन्दरता, स्पष्टता सराहनीय है।
___ प्रथम भाग में सम्पादक द्वारा लिखी गई 'अज्ञात शहीदों के प्रति'-कविता अपना ऐसा प्रभाव डालती है कि पुस्तक के शिथिल अंशों के पढ़ने में भी ऊब नहीं पाती । शैली की उत्कृष्टता में भावों की सबलता अपना रस छलकाती है।
तटपर घड़ों का भरने के पहले ही फूट जाना, स्याही द्वारा उनका भुलाया माना श्रादि भाव तो सन्दर हैं ही, पर कुछ उपमाएं क्या सजीव है १ देखिए :
"जिनकी हरी दूब सी पत्नी अब तक बैठी रोती है।
जिनकी बूढी माँ बेचारी श्रॉसू से मुँह धोती है ॥" ... नव-वधू को हरी दूब कह कर कवि ने आगे के निर्जीव शब्दों में भी जीवन
का सञ्चार कर दिया है। - श्रागे श्री सुधेश' जी के 'उदय' नामक खण्ड काव्य को स्थान दिया गया है जो पुस्तक के सम्पूर्ण प्रथम भाग में छापा हुआ है और है वास्तव में मुख्यांश भी यही है । खण्ड काव्य की रीति के अनुसार यह काव्य भी परिचय से लेकर शव-यात्रा तक कई सर्गों में विभक्त है। इनमें कई मार्मिक स्थल यत्र तत्र विखरे पड़े हैं। अभिमन्यु बध की भाँति मार्मिक स्थल विस्तृत और प्रभावशाली नहीं दिए गए हैं फिर भी वे कम प्रभावक नहीं हैं।
- इस काव्य की अपनी विशेषताएं उदय का साहस, मजिस्ट्रेट के मना करने पर भी जनता द्वारा शव-जुलूस निकालने का निश्चय और उदय की अहिंसास्मक नीति अादि चित्र गाँधी-वाद के समर्थन के द्योतक हैं। काव्य द्वारा बलिदान के मूल्याङ्कन की क्षमता जनता को प्राप्त होती है । आदर्शोनमुख यथार्थवाद की स्थापना पुस्तक का प्रमुख लक्ष्य है। ___कहीं कहीं प्रकृति का मानवीकरण भी ऐसी नवीनता और मौलिकता लेकर अवतीर्ण हुअा है जहाँ सफलता ही सफलता है । शव-दर्शन के निमित्त नेता गिरिजाशंकर का जेल में बन्द होने के कारण विवशता का मार्मिक वर्णन हुआ है। - उदय के मरने पर :
'झरने रोने लगे शीघ्र, सर पटक इटक चट्टानों में । और नर्मदा खा पहाड़ गिर पड़ी, व्यथिय मैदानों में ॥'