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* अहिंसा-वाणी * मेरे प्रिय नागरिको ! एक विशेष बात ध्यान में रखने की है कि सच्चे, ईमानदार चरित्रवान प्रजा-जन ही राज्य की सच्ची सम्पत्ति होते हैं। राज्य का टिकाऊपन, जनतंत्र में उन पर ही होता है। अस्तु, मुझे पूर्ण विश्वास है कि आप अपने उत्तरदायित्व को भली प्रकार से समझेंगे।
आप लोगों में से सभी वर्ग के प्रतिनिधि लिए जायेंगे। [सब ओर से करतल ध्वनि होती है । जय-जयकार होता है । वादिन बजने लगते हैं] कुमार---अब आप लोग शान्त होकर अपने-अपने घर चले जाएँ। आप लोग
प्रत्येक वर्ग में से दो-दो व्यक्ति अपने-अपने प्रतिनिधि चुनकर मन्त्रणा के लिए मन्त्रिवर के सहयोगी के रूप में भेज दें। शेष कुछ विद्वान लोगों से भी सक्रिय योग लिया जायगा । अब आप लोग जा सकेंगे।
आगे की कार्यवाही का हमें ध्यान रखना है।
(नागरिक वृन्द उत्साह से 'राजकुमार की जय-जय-जय नाद करते प्रास्थान करते हैं । पट परिवर्तन होता है।)
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(तृतीय दृश्य)
स्थान-उद्यान [कुमार स्वतंत्र एकाकी टहल रहे हैं । किसी अज्ञात चिन्तना में निमग्न हैं। यकायक दो रमणियों (वासना और कुजा) का लजाते, सकुचाते, इठलाते हुए प्रवेश । कुमार भौचक्के से उनकी ओर देखने लगते हैं।] कुमार-आप कौन हैं ? कुब्जा-में...तो......आप की दासी ही समझिए। कुमार-मेरी दासी कोई नहीं । सब बहिनें, माताएँ; समझी श्राप ! (वासना
की ओर संकेत करते हुए) आप का परिचय । कुब्जा-आप ही नगर को सब से सुन्दर वाला कुमारी वासना हैं। और मैं
इनकी सहेली कुजा! कुमार-तो आप ने कैसा कष्ट किया ? कुब्जा-आपके दर्शनों के लिए चली आई। कुमार-केवल दर्शनों के लिए ? मुझ में ऐसी कौन-सी खूबी है जो आप ने
इतना कष्ट किया ? 'वासना -(कनखियों से देखतो हुई) कुमार, आप जानते हैं कमलिनी रवि के
दर्शन कर खिल उठती है और कुमुदिनी शशि के ? तो मैं अपने शशि के दर्शन करने चली आई तो क्या कष्ट किया ?