Book Title: Ahimsa Vani 1952 08 Varsh 02 Ank 05
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Jain Mission Aliganj

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Page 29
________________ हे स्वतन्त्रते ! तब अभिनंदन, मैं ही क्या, सब जग करना है !! श्री शालिग्राम शर्मा पी० ए० (द्वितीय वर्ष), विशारद हे स्वतन्त्रते ! तब अभिनंदन मैं ही क्या, सब जग करता है !! तू स्वर्णिम उषा सी सुन्दर जीवन सुखमय करने वाली। मानव के शुष्क हृदय को तू मधुमय रस से भरने वाली। तू पूत जाह्नवी की धारा, तू पारिजात की है डाली। तू शरद सोम सीकर देती निज कर से रजनी उजियाली। तेरी तरणी पर बैठ व्यक्ति भवसागर पार उतरता है! हे स्वतन्त्रते ! तब अभिनंदन, मैं ही क्या सब जग करता है !! ? कानन में भूखा चानन करता मस्ती का अनुभव है। केकी को मस्त नाचने में मिलता अपूर्व कुछ गौरव है। शुक, सारी, पारावत वन में व्रत कर आनंद उड़ाते हैं। पर चामीकर-पिंजर में वे मोदक भी खा, दुख पाते हैं। तू मातृ-कोड़ सी प्रिय लगती, सार। जग तुझ पर मरता है ! हे स्वतन्त्रते ! तब अभिनंदन, मैं ही क्या सब जग करता है !! २ तेरा अस्तित्व अनोखा है, तेरा व्यक्तित्व निराला है। तेरे भीतर जगदीश्वर ने कुछ अद्भुत जादू डाला है। तेरी महिमा, तेरी गरिमा, तेरी महर्घता न्यारी है। उन्नति का बीज उगाने को तू एक उर्वरा क्यारी है। तेरे आगे कँपती रहती थर थर सदैव बर्बरता है। हे स्वतन्त्रते । तब अभिनंदन, मैं ही क्या सब जग करता है !!३ लाखों शीशों को दे करके तेरी रक्षा की जाती है। तेरी मख पूरी करने को कितनी आहुति दी जाती है। तू योग्य नागरिक की जननी, तू देशों की आधार-शिला। गाँधी, नेहरू, राणा, शिव को तव कारण ही है सुयश मिला। युग युग का भीषण निविड़ तिमिर तव प्रेमी क्षण में हरता है । हे स्वतन्त्रते । तव अभिनंदन, मैं ही क्या सब जग करता है।।४ हाँ एक बात कहता हूँ मैं, यदि तू अनियन्त्रित हो जाती। . तो पारतन्त्रण से भी बढ़कर तू दंशक बन काटे खाती। इस हेतु तुझे नित सावधान अनियन्त्रण से रहना होगा। श्रमिकों के शोणित में सनकर तुझको न देघि । बहना होगा। तू नैतिक और नियन्त्रित बन इसमें ही तप तत्परता है ! हे स्वतन्त्रते ! तवं अभिनंदन, मैं ही क्या सब जग करता है ।। ५ redicience

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