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दो गीत-]
[-श्री रतन पहाड़ी
(१) युग-जागरण - हमने अपना लहू सींच यह भारत का दिन देखा है। अरमानों में आग लगा दी बलिदानों मे भूमि पाट दी, अपने जीवन की सांसों से हमने युग को गति ही गति दी, फूल खिले बगिया में आखिर फिर बसन्त छाया उस पर, शोभा मदमाती सी आई जीवन रंग लाया उस पर;
हमने अपने भाई के भी शीष लुढ़कते देखे हैं, हमने अपने भाई भी फाँसी पर चढ़ते देखे हैं, हमने देखा जलियाँवाला बाग खून से भरा हुआ, भगत सिंह का सिंह देह भी कभी कफन से बँधा हुआ, तात्या टोपे, लक्ष्मीबाई, नाना की कुर्वानी क्या ?
भारत का इतिहास भरा है भूलेंगे हम उनको क्या ? अरे, सैकड़ों लोगों को फांसी पर चढ़ते देखा है, अरे, सैकड़ों बच्चों को भालों से छिदते देखा है, अरे, सैकड़ों बुड्ढों को पेटों से चलते देखा है; खून-खून के छींटों से इतिहास बदलते देखा है। हमने अपना लहू... अगणित घटनाएँ घटती है किन्तु असर सबका होता है, क्रान्तिं द्रोह-विद्रोह देश में किन्तु समय सबका होता है, कली-कली कचनार गुलाबी फूल प्रफुल्लित डाली-डाली, मन्द समीरण में बह बहकर खिली साध में पलने वाली, कली बन्द कोषों में रह रह हिल हिलकर आखिर कहती है हमें फूल बनने दो यह तो जन्मसिद्ध अधिकार हमारा ।
हम जकड़े जंजीरों में थे जंजीरों को सदा कोसते, सत्याग्रह काले पानी जेलों को हम भरते रहते किन्तु हमाराध्येय एक था हम स्वतन्त्र अधिकार हमारा , गाँधी की जय माता की जय इन्क्लाब का केवल नारा । अब स्वतन्त्र हम देश हमारा राज्य हमारा तन्त्र हमारा
भूमि हमारी प्रजा हमारी कण-कण औ' आकाश हमारा। झोपड़ियों से आग ताप यह दिवस आज का देखा है । हमने अपना लहू. आज तलक माताएँ अपने मृत शिशुओं की थीं चिता सजाती, आज तलक पत्नी भी अपने पति शहीद को माल पिन्हाती,