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नयी खोज के निष्कर्ष पर नहीं पहुँच पायेंगे, अहिंसा की क्रियान्विति आवरण को उतारे बिना
कोरी कल्पना बनकर रह जायेगी। कल्पना के विश्व शांति का सपना साकार नहीं हो सकता। अहिंसा की खोज
गहनतम अपराधियों में भी कभी-कभी बच्चों जैसा निर्दोष भाव होता है। उस भाव की गहराई में जाकर अनुसन्धान करने का प्रयास कर रहा हूँ। यह भाव तो मनुष्य का स्वभाव है, फिर यह इतना सिकुड़ कैसे गया कि कभी कभी दिखायी देता है। हिंसा रूपी विभाव इतना फैल कैसे गया कि स्वभाव पर कई पर्ने चढ़ा रहा है?
हम इतने संवेदनहीन और स्वार्थी कैसे हो रहे हैं कि तड़फते जीवों को देखकर हमारी आँखें अब नम नहीं होतीं। हम बड़ी से बड़ी दुर्घटना देखकर भी तब तक नहीं रोते जब तक कि इससे हमारा कोई सगा पीड़ित न हुआ हो ।
चंद रुपयों की खातिर हम किसी का घर उजड़ते कैसे देख लेते हैं? निर्दोष पशु-पक्षियों के कत्ल से बने व्यञ्जन हलक से कैसे उत्तर जाते हैं? ऐसे निपट करुणा विहीन जीवन जीने को हम मानवीय सभ्यता का विकास कैसे कह सकते हैं?
अपना ज़मीर बेचकर खुशियाँ खरीद लें,
ऐसे तो इस जहाँ के तलबदार हम नहीं । वो आँख क्या जो गैर की खातिर न रो सके, वो दिल ही क्या जिसमें जमाने का गम नहीं ॥
अहिंसा का अर्थ
अहिंसा का अर्थ है आत्माओं की साम्यता का सिद्धान्त । जो अन्य जीवों के भीतर है, वही तुम्हारे भीतर है मैं अपने को ही चोट कैसे पहुँचा सकता हूँ? जो इस अनुभूति में जियेगा कि दूसरों को दुःख देने का अर्थ है खुद को दुःख देना- वह हिंसा में प्रवृत्त नहीं होगा। जिसे
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