Book Title: Agnat Pratima Ki Khoj
Author(s): Rekha Jain
Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 4
________________ जैन चित्रकथा एक दिनसम्राट ऋषभदेव के राज दरबार में नीलांजना-तिलोतमा नामक नर्तकी नाच रही थी।नाचते समय उसकी मृत्यु हो गई। मैं आज आदि तीर्थकर भगवान ऋषभदेव की कथा आगे सुनाता हूँ। SAV8 इस दृश्य को देखकर सम्राट ऋषभदेव सन्यासी बन गष्ट। दिगम्बर सन्यासी बनने के पहले उनने अपना राज्य पुत्रों को सौंप दिया। बाद में सम्राट भरत और बाहुबली में युद्ध हुआ। बाहुबली ने चक्रवर्ती सम्राट भरत को हरा दिया, किन्तु अपने भाई से युद्ध करने के कारण उन्हें वैराग्य उत्पन्न हुआ और युद्ध स्थल में ही शस्त्र फेक कर, दिगम्बर सन्यासी बन तपस्या करने जंगल में चले गए। उन्होने बहुत कठोर तपस्या की उनके शरीर पर बेलें चढ़ गई, सर्प शरीर पर चढ़ने लगे। सम्राट भरत ने बाहुबलि की साधना को स्थाई बनाने के लिए उनकी बहुत सुन्दर, विशाल मूर्ति बनवाई थी। बहुत लम्बा समय बीत गया,पता नहीं वह मूर्ति कहाँ है। यदि कोई खोज निकाले तो संसार की सबसे सुन्दर प्रतिमा प्रमाणित होगी। गंगवंश के महाराज रायमल्ल के मंत्री वीर चामुण्डशय की माँ चिन्तन मुद्रा में बैठी है आचार्य श्री ने अपने प्रवचन में गोम्मटेश्वर बाहुबलि की प्रतिमा की प्यास जगादी। बाहुबलि की उससुन्दर मूर्ति के दर्शन किए बिनासंसार में सूना-सूना लगता है। SO

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24