Book Title: Agnat Pratima Ki Khoj
Author(s): Rekha Jain
Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala

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Page 23
________________ सम्पादकीय अज्ञात प्रतिमा की खोज आराधना के क्षेत्र में सामान्य मनुष्य की यह मनोवृत्ति होती है कि वह अपनी सांसारिक समस्या का समाधान भी अपने आराध्य के व्यक्तित्व में ढूँढ़ना चाहता है, ऐसे समाधान देने वाले व्यक्तित्व की आराधना में मनुष्य अधिक रुचि, अधिक आकर्षण अनुभव करता है । भगवान बाहुबली की मूर्ति के दर्शन करने एवं भक्ति करनी की भावना श्री गंग राजाओं के मंत्री तथा मुख्य सेनानायक श्री चामुण्डराय की माता काललदेवी की भक्ति से तथा दिगम्बर जैनाचार्य श्री नेमीचंद्राचार्य की प्रेरणा से उस अज्ञात बाहुवली को विन्ध्यगिरी की पहाड़ी पर विशाल शिला के अन्दर छिपे थे उनकी खोज कराकर उनको विराट बिम्ब का निर्माण किया । चामुण्डराय ने विशाल प्रस्तर -खण्ड को निपुण शिल्पियों से उत्कीर्ण करवा कर कलात्मक दिव्य प्रतिमा में बाहुबली की सौम्य छवि का आविर्भाव किया । इतनी विशाल एवं कलात्मक मूर्ति संसार मे अन्यत्र अनुपलब्ध है । अवलोकन करने वाले का ललाट भले ही आकाश की ऊँचाई तक उठ जाय, उनका आध्यात्मिक भाल तो भगवान गोमटेश्वर के चरणों में ही रहेगा। 57 फुट ऊँची इस भव्य मूर्ति का सौन्दर्य अलौकिक है । इस अज्ञात प्रतिमा की प्रतिष्ठा करा कर गोमटेश्वर के रूप में दक्षिण भारत को एक देन दी। जो आज भी जन-जन के आराध्य है । ब्र. धर्मचंद शास्त्री प्रतिष्ठाचार्य

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