Book Title: Agam aur Tripitak Ek Anushilan Part 2
Author(s): Nagrajmuni
Publisher: Arhat Prakashan

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Page 10
________________ स्वयं विद्वान् एवं मुद्रण-विशेषज्ञ हैं ही। ग्रन्थ के शीघ्र प्रकाशन की दृष्टि से प्रापने कलकत्ता एवं अजमेर के अपनी दोनों प्रेसों का उपयोग किया। मैं संस्था की पोर से उक्त दोनों महानुभावों के प्रति प्राभार व्यक्त करता हूं। माशा है, समीक्षक पाठक बन्धु हमारे श्रम का यथोचित अंकन करेंगे व हमें प्रोत्साहित करेंगे। दीपावली, १५ नवम्बर १९८२ कलकत्ता -बिमलकुमार जैन साहित्य मंत्री-अहत् प्रकाशन ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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