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उद्देशक : १५, मूलं-१०३३, [भा. ५०९०]
१२७ मू. (१०३३) जे भिक्खू विभूसावडियाए अप्पणो दीहाई मंसुरोमाइंकप्पेज वा संठवेज वा कप्तं वा संठवेंतं वा सातिजति ॥
मू. (१०३४) जे भिक्खू विभूसावडियाए अप्पणो दंते आघंसेज वा पघंसेज वा, आघसंतं वा पघंसंतं वा सातिजति ॥
मू. (१०३५)जे भिक्खू विभूसवडियाए अप्पणो दंते उच्छोलेज वा पधोएज वा, उच्छोलेंतं वा पधोएंतं वा सातिज्जति॥
मू. (१०३६) जे भिक्खू विभूसावडियाए अप्पणो दंते फूमेज वा रएज वा, फूमंतं वा रयंत वा सातिजति ॥ __ मू. (१०३७) जे भिक्खू विभूसावडियाए अप्पमो उट्टे आमजेज वा पमज्जेज वा आमजंतं वा पमजंतं वा सातिजति॥
मू. (१०३८) जे भिक्खू विभूसावडियाए अप्पणो उढे संबाहेज वा पलिमद्देज वा संबाहेंतं वा पलिमद्देतं वा सातिजति ॥
मू. (१०३९)जेभिक्खू विभूसावडियाए अप्पणो उडेतेल्लेण वाघएण वा वसाए वा नवनीएण वा मक्खेज वा भिलिंगेज वा मक्खेंतं वा भिलिंगेतं वा सातिजति ॥
मू. (१०४०) जे भिक्खू विभूसावडियाए अप्पणो उढे लोद्धेण वा कक्केण वा उल्लोलेज वा उब्बट्टेज वा उल्लोलेतं वा उव्वदे॒तं वा सातिजति॥
मू. (१०४१)जेभिक्खूविभूसावडियाए अप्पणो उद्धेसीओदगवियडेणवाउसिणोदगवियडेण वा उच्छोलेज वा पधोएज्ज वा उच्छोलेंतं वा पधोएंतं वा सातिजति ॥
मू. (१०४२) जे भिक्खू विभूसावडियाए अप्पणो उट्टे फूमेज वा रएज वा, फूमंतं वा रयंतं वा सातिजति ॥
मू. (१०४३) जे भिक्खू विभूसावडियाए अप्पणो दीहाइं उत्तरोडाइंकप्पेज वा संठवेज वा कप्तं वा संठवेंतं वा सातिजति ॥ ___ मू. (१०)जे भिक्खू विभुसावडियाए अप्पणो दीहाई नासारोमाइंकप्पेज वा संठवेज्जवा कप्तं वासंठवेंतं वा सातिजति।
मू. (१०४५)जे भिक्खू विभूसावडियाए अप्पणो दीहाइं अच्छिपत्ताई कप्पेज वा संठवेज वा कप्पेंतं वा संठवेंतं वा सातिजति ॥
मू. (१०४३)जेभिक्खूविभूसावडियाएअप्पणो अच्छीणि आमजेज वा पमजेज वाआमजंतं वा पमजंतं वा सातिजति ॥
मू. (१०४७) जे भिक्खूविभूसावडियाए अप्पणो अच्छीणि संबाहेज पलिमद्देज वा संबाहेंतं वा पलिमदत वा सातिजति ॥
मू. (१०४८)जे भिक्खू विभूसावडियाए अप्पणो अच्छीणि तेल्लेण वा घएण वा वसाए वा नवनीएण वा मक्खेज वा भिलिंगेज वा, मक्खेंतं वा मिलिंगेतं वा सातिजति ॥
मू. (१०४१)जे भिक्खूविभूसावडियाए अप्पणो अच्छीणिलोद्धेण वा कक्केण वा उल्लोलेज वा उबट्टेज वा उल्लोलेंतं वा उव्वदे॒तं वा सातिजति ॥
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