Book Title: Agam Suttani Satikam Part 17 Nishitha
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 358
________________ उद्देशक ः २०, मूलं-१३७०, [भा. ६३५०] ३५५ भण्णतिति, आदिग्गहणाओ भिक्खु-वसह-वुड्ड-खुड्डगा य घेप्पंति । अहवा - जं आयरियादी परोप्परंचोदेति मितंमधुरंसोवालंभं वाखरफरुसादीहिंवाचमढेत्तापच्छित्तदाणेणयअसामायारीओ नियत्ति त्ति एसो वा पंजरो । पंजरभग्गो पुण एवं चेव असहंतो गच्छओ णीति । “गच्छम्मि केई पुरिसा कारग गाहा कंठा । “जह सउण पंजरे दुक्खं अच्छति तहा" . एत्थ सउणदिलुतोकजति-जहापंजरत्थस्स सउणस्स सलागादीहंसच्छंदगमण निवारिज्जति एवं आयरियादि पुरिसगछपंजरे सारणसलागादियं सामायारिं उम्मग्गगमणं निवारिज्जति । एत्थ जे संविग्गाणं मूलाओ नाणदंसणट्ठाए आगता, जे य परिहवेंतेण मूलाओ आगया चरित्तट्ठा एतेसंगेण्हियव्वा ।जेपुणपंजरभग्गानाणदंसणट्टाए आगता, जेपरिहवेंताण मूलाओनाणदंसणट्ठाए आघया, एते न संगिण्हियव्वा ॥ एत्थ जे संगिव्हियव्वा ते एगो वा होज, अणेगा वा । जतो भणति[भा.६३५१] ते पुण एगमणेगाणेगाणं सारणं जहा कप्पे । उवसंपद आउट्टे, अविउट्टे अन्नहिं गच्छे ।। चू-तत्थ जे अनेगा तेसिं सीदंताणं सारणा जहा कप्पे भणिता “उवदेसो सारणाचेव ततिता पडिसारणा" इत्यादि, “घट्टिजंतं वत्थं अतिरुव्वणकुंकुमसिली जता" इत्यादि । जो पुण एगो सो असामायारिं करेंतोचोदित जइ आउट्टितो तस्स उवसंपदा भवति, “अविउट्टे"त्ति-जतिन आ उट्टितो, भण्णति “अन्नहि गच्छे" ति ॥ एसा आगयाणं परिच्छा गता। ____ अहवा- एयं पच्छद्धं-अन्नहा भण्णति-तेन विआगंतुणा गच्छो परिच्छियव्वो आवस्सगमादीहिंपुव्वभणियदारेहिं ।गच्छिल्लगाणंजति किंचिआवस्सगदारेहिंसीदंतंपस्सइतोआयरियातीणं कहेति, जति सो कहिए सम्म आउट्टति त्तितं साधुचोदेति पच्छित्तं च से देति तो तत्थ उवसंपदा। अह कहिते सो आयरिओ तुसिणीओ अच्छति भणित वा - किं तुझं, नो सम्मं आउट्टति? तो अविउट्टे आयरिए अन्नहिं गच्छति अन्यत्रोपसंन्नतेत्यर्थः॥ ततियभंगिल्ले इमा पडिच्छणविही[भा.६३५२] निग्गमणे परिसुद्धो, आगमने असुद्धे देंति पच्छित्तं । निग्गमण अपरिसुद्धे, इमा उ जयणा तहिं होति ॥ चू-ततियभंगिल्लस्स वइयादिसुपडिबद्धस्स सुद्धस्स जंआवण्णोतंपच्छित्तं दाउंपडिच्छंति। जति पुण पढमबितिज्जेण वा भंगेण अहिकरणादीहिं एगे अपरिणयादीहिं वा आगता, जे य पंजरभग्गा, जेपरिहावेंतेसु नाणदंसणट्ठाते आगतातेन संगिव्हियव्वा, नयफुडंपडिसेहिजंति।। तेसिं इमा पडिसेहणजयणा[भा.६३५३] नत्थि संकियसंघाडमंडली भिक्ख बाहिरानयणे। पच्छित्त विओसग्गे, निग्गयसुत्तस्स छण्णेणं । “नथि संकिय" अस्य व्याख्या[भा.६३५४] णत्थेयं मे जमिच्छह, सुत्तं मए आम संकियं तं तु । ___न य संकियं तु दिज्जइ, निस्संकसुते गवेसाहि॥ चू-जं एतं सुत्तत्थं तुब्भे इच्छह एयं सम नत्थि । अह सो भणाति -अन्नसमीवे सुतं मए जहा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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