Book Title: Agam Suttani Satikam Part 17 Nishitha
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 399
________________ ३९६ निशीथ-छेदसूत्रम् -३-२०/१३८१ तिन्नि वायाइखुभिया मंदनुभावा छिज्जंति त्ति। “बहुएहिं वि छिज्जंति" त्ति बहुएहिं विघयकुडेहिं बहु चेव वायातीखुभियाइ छिज्जंति । एस चरिमभगो । “बहूहि एक्केकओ वा वि"त्ति बाहिं घयकुडेहिं अच्चत्थमवगाढो एक्केको वायाइवाही छिज्जति । एसततियभंगो।एवंजेणमासारुहेहिं रागाइएहिं मासो सेवितो सोमासेण सुज्झइत्ति, जिना तस्स मासंचेव देंति।बितियभंगे बहुमासा पडिसेविता मंदानुभावेण हा दुटुकयादीहि य पयणुकया जहा मासेनेव सुज्झति त्ति जिना तस्स चेव मासं देंति, जेन वा पणगादिणा सुज्झति तं देति । ततियभंगे तिव्वज्झवसाणसेविते मासे रागादीहिं वा हरिसायंतस्स मासेण न सुज्झतित्ति जिना नाउंदुमासादी देंति, रागुवरुवरि वड्डित जाव पारंचियं देति । चरिमभंगो पुण पढमसरिच्छो । अहवा- बहुसु संचयमासेसु जिना छम्मासं चेव दिति ठवणारोवणवजं, एव अन्नेसु विओसहेसुचउभंगो भाणियव्यो॥ इमो दिद्रुतोवणतो[भा.६५०७] धन्तरितुल्लो जिनो, नायब्वो आतुरोवमो साहू। रागा इव अवराहा, ओसहसरिसा य पच्छित्ता॥ जहा धनंतरी तहा जिनो, जहा रोगी तहा साहू सावराधी, जहा ते रोगा तहा ते मुलुत्तर गुणावराहा, जहा ताणि ओसहाणि तहा मासादी पच्छित्ता । एवं जिना नाउंजत्तिएणेव सुज्झति तत्तिय चेव दिति । एवं जिनं च पडुच्च दोसा एगत्तमावण्णा॥ इदानं चोद्दसपुट्विं पडुच्च जहा दोसाण एगत्तं तहा भण्णति[भा.६५०८] एसेव य दिट्टतो, विब्भंगिकतेहि वेज्जसत्थेहिं । भिसजा करेंति किरियं, सोहंति तहेव पुव्वधरा ॥ चू- जहां विभंगी रोगोसह चउभंगा विकप्पेण अवितहं किरियं करेंति । “भिसज"त्ति - वेज्जा ते वि तहा विभंगीकयवेजितसत्थाणुसारेण चउविकप्पेण अवितहं रोगावणयणकिरियं करेंति । “एसेव दिटुंतो' 'त्ति एसेव चोद्दसपुवीण दिटुंतो कज्जति, जहा ते वेज्जा तहा चोद्दसपुव्वधरा, परिहाणीएजावपुव्वधरा, परिहाणि नाम नवपुवततियवत्थुति, एए विजिनाभिहितागमाणुसार जिना इव अवितहं जेण विसुज्झति त चेव पच्छित्तं देति ॥ चोदकाह - “जिना केवलनाणसामत्थतोपच्चक्खं रागादियाण वड्डोवड्डिपस्संता तहा पच्छित्तं देंति, चोद्दसपुव्वी अपेच्छंतो कहिं दिज्ज" ? अत्रोच्यते[भा.६५०९] नालीत परूवणता, जह तीइ गतो उ नज्जती कालो। तह पुव्वधरा भावं, जाणंती सुज्झते जेणं ।। चू-“नालीत"त्ति-घडितोउदगगलणोवलक्खित्तोकालो, तीएयघडियाए परूवणाकायव्वा, जहा पलित्तयकए कालनाणे, जहा तीए दिवपरातिकालस्स य किं गतं सेसं वा नजति तहा पुव्वधरा दुरूवलक्खंभावंआगमप्पमाणतो जाणंति, भावे यनाएजेन पच्छित्तेण सुज्झति तम्मत्तं हीनमहियं वा चउभंग विगप्पेण जिना इव पुव्वधरा वि देंति, एवं चोद्दसपुव्वीए पडुच्च दोसा एगत्तमावन्ना ॥ चोद्दसपुवीण नालिय त्ति गयं । इदानिं जाति पडुच्च दोसा जहा एगत्तमावन्ना तहा भण्णति । अत्र वाक्यं “दव्वे एगमनेग"त्ति, जाती दुविहा - पच्छित्तजाती दव्वजाती य। एत्थ इमे भण्णति For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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