Book Title: Agam Suttani Satikam Part 17 Nishitha
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 346
________________ उद्देशक : २०, मूलं-१३७०, [भा. ६२९०] ३४३ बत्तीसं । एतेसिं विसेसे कते सेसमुद्धरितं एक्कतीसं बासट्ठिभागा अन्ने तीसं चेव वासट्ठिभागा, एतेउवट्ठिया परोप्परंछेदगुणकाउंएगस्स सरिसच्छेदो नेढेअंसेसुपक्खित्ता तेसुविच्छेयं सवट्ठिएसु एगसट्ठिबासट्ठिभागाजायाअहोरत्तस्स, एसएक्को तिही सोमगतीए सोतीसगुणितो बिसट्ठिभातिओ चंदमासपरिमाणनिष्फण्णो अहिमासगो भवति। ___ अहवा-इमेण विहिणा कायव्वं-जइ एक्केणआइच्चमासेणएक्का सोमतिही लब्भति तो तीसाए आदिच्चमासेहिं कतितिही लब्मामो, आगतंतीसंसोमतिहीओ, एसआदिच्चचंदवरिसअभिवड्डियछम्मासे यप्रतिदिनप्रतिमासंच कला वड्डमाणीतीसाएमासेसुमासोपूरतिति, एसो अधिमासगो चंदमासप्पमाणो चंदो अधिमासगो भण्णति, एयंचेव अभिवहिं पडुच्च अभिवडिवरिसंभण्णति। ____ भणियं च सूरपन्नत्तीए- “तेरस य चंदमासो, एसो अभिवडिओ त्ति नायव्वो" वर्षमिति वाक्यशेषः । तस्स बारसभागो अधिमासगो अभिवड्डियर्षमासेत्यर्थः ।अथवा-अधिमासगप्पमाणं इमं एगतीसं दिणा अउनतीस मुहुत्ता बिसहि भागा एस सतरसा, एते कहं भवंति ? उच्यते-जं एगवीस उत्तरसयंअंसाणंतीसगुणंकायव्वंतस्स भागोसयेण चउवीसउत्तरेण भागलद्धं अउनतीसं मुहुत्ता, सेसस्स अद्धे ताव दो, तत्थ विसट्ठि भागा सत्तरस भवंति, एवं वा एखतीसदिणसहियं अधिकमासपमाणं । एसो पंचविहो कालमासो भण्णति॥ इदानिं भावमासो सो दुविहो आगमतो नो आगमतो य[भा.६२९१] मूलादिवेदओ खलु, भावे जो वा वियाणतो तस्स। न हि अग्गिनाणओऽग्गी-नाणं भावो ततोऽणन्नो। चू-जोजीवो घण्ण-मास-मूल-कंद-पत्त-पुप्फ-फलादि वेदेति सोभावमासो, जो वा आगमतो उवउत्तोमासइति पदस्थजाणओ।चोदगाह-“नहि अग्गिनाणओअग्गि"त्तिनत्वग्निज्ञानोपयोगतः आत्मा अगन्याख्यो भवति। एवमुक्ते चोदकेनाचार्याह- “नाणंभावी ततो णऽन्नो"त्ति नाणं ति ज्ञानं, भावः अधिगमः उपयोग इत्यनर्यान्तरमिति कृत्वा अग्निद्रव्योपयुक्त आत्मा तस्मादग्निभावादन्यो न भवति॥एत्थ छब्बिहो मासनिक्खेवो, कालमासेण अधिकारो तत्थ विउडुमासेण, सेसा सीसस्स विकोवणट्ठा भणिया, मासे त्तिगयं । इदानि “परिहारे"त्ति, तस्स इमो निक्खेवो[भा.६२९२] नामं ठवणा दविए, परिगम परिहरण वजणोग्गहे चेव । भावावण्णे सुद्धे, नव परिहारस्स नामाई॥ चू- भावपरिहारो दुविधो कजति (आवण्णपरिहारो सुद्धो य) आवण्णपरिहारितो एस चरित्ताइयारो।अहवा- भावपरिहारितोदुविधोपसत्थोअप्पसत्थोय।पसत्थे जो अन्नाणमिच्छादि परिहरति, अपसत्यो जो नाणदंसणचरित्ताणि परिहरति । एवं भावे तिविहे कञ्जमाणे दसविहो परिहारनिक्खेवो भवति ॥एतेसिं इमा व्याख्या-नामठवणातो गतातो, वतिरित्तो दव्वपरिहारो। [भा.६२९३] कंटगमादी दव्वे, गिरिनदिमादीसुपरिरओ होति । __ परिहरण धरण भोगे, लोउत्तर वज्ज इत्तरिए॥ [भा.६२९४] . लोगेजह माता ऊ, पुत्तं परिहरति एवमादी उ। लोउत्तरपरिहारो, दुविहो परिभोग धरणे य ।। जो कटगादीणि परिहरति आदिग्गहणेणं खाणू विससप्पादी । परिगमपरिहारो नाम जो For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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