Book Title: Agam Sutra Satik 43 Uttaradhyayanani MoolSutra 4
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 647
________________ उत्तराध्ययन मूलसूत्रम् - २-३६/१४९९ गंधओ रसओ चेव. भइए संठाणओवि ।। मू.(१५००) फासओ गुरुए जे उ, भइए से उवनाओ। गंधओ रसओ चेव, भइए संठाणओवि ॥ मू.(१५०१) फासओ लहए जे उ. भइए से उ वन्नओ। गंधओ रसओ चेव. भइए संठाणओवि अ॥ मू.(१५०२) फासओ सीआए जे उ, भइए से उवनाओ। गंधओ रसओ चेव, भइए संठाणओवि अ॥ मू.(१५०३) फासओ उण्हए जे उ. भइए से उ वनाओ। गंधओ रसओ चेव, भइए संठाणओवि अ॥ मू.(१५०४) फासओ निद्धए जे उ, भइए से उ वत्रओ। गंधओ रसओ चेव, भइए संठाणओवि ॥ मू.(१५०५) फासओ लुक्खए जे उ, भइए से उवनाओ। गंधओ रसओ चेव, भइए संठाणओवि ॥ मू.(१५०६) परिमंडलसंठाणे, भइए से उ वनाओ। गंधओ रसओ चेव, भइए फासओवि अ॥ मू.(१५०७) संठाणओ भवेवटे, भइए से उवण्णओ। गंधओ रसओ चेव, भइए फासओवि अ।। मू.(१५०८) संठाणओ भवे तंसे, भइए से उवण्णओ। गंधओ रसओ चेव, भइए फासओवि अ॥ मू.(१५०९) संठाणओ य चउरंसे, भइए से उवण्याओ। गंधओ रसओ चेव, भइए फासओवि अ।। मू.(१५१०) जे आययसंठाणे, भइए से उवण्णओ। गंधओ रसओ चेव, भइए फासओवि य॥ ख. वर्णतो गन्धतश्चैव रसतः स्पर्शतस्तथा संस्थानतश्च, अयमर्थ:-वर्णादन्यपञ्चाश्रित्य "विज्ञेयः' ज्ञातव्य: 'परिणाम;' स्वरूपावस्थितानामेव वर्णाद्यन्यथाऽन्यथाभवनरूप: 'तेषाम्' इति परमाणूनां स्कन्धानां च पञ्चधा' पञ्चप्रकाराः, मेदहेतोर्वर्णाद्युपधेः पञ्चविधत्वदिति भावः । प्रत्येकमेषामेवोत्तरभेदानाह-'वर्णतः परिणताः' वर्णपरिणामभाज इत्यर्थः 'ये' अण्वादय: 'तुः' पूरणे पञ्चधा ते 'प्रकीर्तिताः' प्रकर्पण सन्देहापनेतृत्वलक्षणेन संशब्दिताः, तानेवाहकृष्णा: कज्जलादिवत्, नीला: नील्यादिवत् लोहिता हिङ्गुलुकादिवत् हारिद्राः हरिद्रादिवत् शुक्लाः शङ्खादिवत् 'तथे ति समुच्चये। _ 'गन्धतो' इत्यादीनि स्पष्टान्येव नवरं 'सुब्भि' (गन्ध)त्ति सुरभिगन्धो यस्मिन् स तथाविधः परिणामो येषां तेऽमी सुरभिगन्धपरिणामाः श्रीखण्डादिवत्, 'दुब्भी'त्ति दुरभिर्गन्धो येषां ते दुरभिगन्धा स्त्रशुनादिवत्, तिक्ताश्च कोसातक्यादिवत् कटुकाश्च सुण्ट्यादिवत् कपायाश्च अपक्वकपित्थादिवत्तिक्तकटुकषायाः आम्लाः आम्लवेतसादिवत् मधुराः शर्कादिवत् कर्कशाः Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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