Book Title: Agam Sutra Satik 43 Uttaradhyayanani MoolSutra 4
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
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उत्तराध्ययन-मूलसूत्रम्-२-३६/१५७१ लब्धितश्च, यत उक्तम्- "दुविहा खलु तसजीवा--लद्धितसा चेव गतितसा चेव"त्ति, ततश्च तेजोवाय्वोर्गतित उदाराणां च लब्धितोऽपि त्रसत्वमिति, उत्तरग्रन्थसम्बन्धनायाह-'तेषा'मिति तेजःप्रभृतीनां भेदान् श्रृणुत 'मे' मम कथयत इति सूत्रार्थः । तत्र तावत्तेजोजोवानाहमू.(१५७२) दुविहा तेउजीवा उ, सुहमा बायरा तहा।
पज्जत्तमपज्जत्ता, एवमेव दुहा पुनो। मू.(१५७३) बायरा जे उ पज्जत्ता, नेगहा ते वियाहिया।
इंगाले मुम्मुरे अगनी, अच्चि जाला तहेव य॥ मू.(१५७४) उक्का विज्जू य बोद्धव्वा, नेगहा एवमायओ।
एगविहमनाणत्ता, सुहमा ते वियाहिया।। मू.(१५७५) सुहुमा सव्वलोगमि, लोगदेसे य बायरा।
इत्तो कालविभागं तु, तेसिं वुच्छं चउब्विहं ।। मू. (१५७६) संतई पप्पऽणाईया, अपज्जवसियावि य।
ठिइं पडुच्च साईया, सपज्जवसियावि य ।। मू.(१५७७) तित्रेव अहोरत्ता, उक्कोसेन वियाहिया।
आउ ठिई तेऊणं, अंतोमुहत्तं जहन्नयं ।। मू.(१५७८) असंखकालमुक्कोसा, अंतोमुहुत्त जहत्रयं ।
कायठिई तेऊणं, तं कायं तु अमुंचओ।। मू.(१५७९) अनंतकालमुक्कोसं, अंतोमुहुत्तं जहन्नयं।
विजमि सए काए, तेउजीवाण अंतरं।। मू: (१५८०) एएसि वन्नओ चेव, गंधओ रसफासओ।
सठाणादेसओ वावि, विहाणाइंसहस्ससो॥ वृ. दुविहेत्यादिसूत्राणि नव प्रायः प्राग्वत्, नवरम् 'अङ्गारः' विगतधूमज्वालो दह्यमानेन्धनात्मकः 'मुर्मुरः' भस्ममिश्राग्निकनरूपः 'अग्निः' इहोक्तभेदातिरिक्तो वह्निः अचिः' मूलप्रतिबद्धा ज्वलनशिखा, दीपशिखेत्यन्ये, 'ज्वाला' छिन्नमूला ज्वलनशिखैवेति सूत्रनवकार्थः ।।
उक्तास्तेजोजीवाः, वायुजीवानाहमू.(१५८१) दुविहा वाउजीवा य, सुहुमा बायरा तहा।
पज्जत्तमपज्जता, एवमेव दुहा पुनो। मू.(१५८२) बायरा जे उपज्जत्ता, पंचहा ते पकितिया।
उक्कलियामंडलियाघनगुंजासुद्धवाया य॥ मू.(१५८३) संवट्टगवाए य, नेगहा एवमाअओ।।
एगविहमनाणत्ता, सुहमा तत्थ वियाहिया। मू.(१५८४) सुहमा सव्वलोगंमि, लोगदेसे य बायरा।
इत्तो कालविभागं तु, तेसि वुच्छं चउब्धिहं।। मू.(१५८५) संतई पप्पऽणाईया, अपज्जवसियावि य।
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