Book Title: Agam Sutra Satik 43 Uttaradhyayanani MoolSutra 4
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 646
________________ अध्ययनं ३६, [ नि.५५९] तित्त कडुपकसाया, अंबिला महुरा तहा।। मू. (१४८३) फासओ परिणया जे उ, अट्ठहा ते पकित्तिया। कक्खडा मउया चेव, गुरुया लहुया तहा।। म.(१४८४) सीया उण्हा य निद्धा य, तहा लुक्खा य आहिया। इति फासपरिणया एए, पुग्गला समुदाहिया। मू.(१४८५) संठाणपरिणया जे उ, पंचहा ते पकित्तिया। परिमंडला य वट्टा य, तंसा चउरंसमायया। मू.(१४८६) वण्णओ जे भवे नीले, भवइ से उ गंधओ। रसओ फासओ चेव, भइए संठाणओविय।। मू. ( १४८७) वनओ जे भवे नीले, भवए से उगंधओ। रसओ फासओ चेव, भइए संठाणओवि य ।। मू.(१४८८) वाओ लोहिए जे उ, भइए से उगंधओ। रसओ फासओ चेव, भइए संठाणओवि य॥ मू.(१४८९) वनओ पीअए जे उ, भइए से उगंधओ। रसओ फासओ वेव, भइए संठाणओवि य॥ मू.(१४१०) वण्णओ सुकिले जे उ, भइए से उगंधओ। रसओ फासओ चेव, भइए संठाणओवि य ।। मू. (१४९१) गंधओ जे भवे सुब्भी, भइए से उवाओ। रसओ फासओ चेव, भइए संठाणओवि य॥ मू.(१४९२) गंधओ जे भवे दुब्भी, भइए से उ वन्नओ। रसओ फासओ चेव, भइए संठाणओवि य॥ मू. ( १४९३) रसओ तित्तओ जे उ, भइए से उ वत्रओ। गंधओ फासओ चेव, भइए संठाणओवि अ॥ मू. ( १४९४ ) रसओ कडुए जे उ, भइए से उ वनओ। गंधओ फासओ चेव, भइए संठाणओवि अ॥ मू. (१४९५) रसओ कसाए जे उ, भइए से उ बनाओ। गंधओ फासओ चेव, भइए संगणओवि अ॥ मू.(१४९६) रसओ अंबिले जे उ, भइए से उ वन्नओ। गंधओ फासओ चेव, भइए संठाणओवि ॥ मू.( १४९७) रसओ महुरए जे उ, भइए से उ वनओ। गंधओ फासओ चेव, भइए संठाणओवि अ॥ मू.(१४९८) फासओ कक्खडे जे उ, भइए से उवाओ। गंधओ रसओ चेव, भइए संठाणओवि अ ।। मू. ( १४९९) फासओ मउए जे उ, भइए से उ वन्नओ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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