Book Title: Agam Gyan Ki Adharshila Pacchis Bol
Author(s): Varunmuni
Publisher: Padma Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 133
________________ आगमज्ञान की आधारशिला : पच्चीस बोल * ११९ * - - - - - - -- देवों में भाव लेश्या तो छहों होती हैं किन्तु द्रव्य लेश्या की अपेक्षा से भवन और व्यन्तर इन दो देवों में कृष्ण, नील, कापोत और तेजोलेश्या-ये चारों लेश्याएँ मानी गई हैं। ज्योतिष्क देवों में केवल पीत लेश्या या तेजोलेश्या का ही उल्लेख है। नीचे के देवों की अपेक्षा ऊपर के देवों की लेश्याएँ संक्लेश की कमी के कारण उत्तरोत्तर विशुद्ध और विशुद्धतर होती गई हैं। पहले दो स्वर्गों के देवों में पीत-तेजोलेश्या होती है जबकि तीसरे से पाँचवें स्वर्ग के देवों में पद्म लेश्या और छठे से सर्वार्थसिद्ध पर्यन्त के देवों में शुक्ल लेश्या का उल्लेख है। इसी प्रकार निर्ग्रन्थ श्रमण की लेश्याओं के बारे में भी चर्चा हुई है। निर्ग्रन्थ पाँच प्रकार के कहे गए हैं (१) पुलाक, (२) बकुश, (३) कुशील, (४) निर्ग्रन्थ, (५) स्नातक। इनमें पुलाक के तेजो, पद्म और शुक्ल लेश्या, बकुश और प्रतिसेवन कुशील में सभी लेश्याएँ होती हैं। परिहार-विशुद्धि संयम वाले कषाय कुशील निर्ग्रन्थ और सयोगीकेवली-स्नातक को मात्र शुक्ल लेश्या होती है तथा अयोगीकेवली जिन लेश्यारहित होते हैं। कहने का आशय यह है कि जीव के ज्यों-ज्यों परिणाम विशुद्ध होते जायेंगे त्यों-त्यों उनकी लेश्याएँ विशुद्ध होती जायेंगी। ___ आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में रंगों के माध्यम से मानसिक रुचि का जो परिज्ञान कराया जाता है वह एक प्रकार से लेश्याओं पर आधारित है। लेश्याओं के सूक्ष्म विश्लेषण से हम अपने अन्तर्जगत् का स्पष्ट चित्र खींचकर बाहर सामने रखते हैं। रंग हमारे मन और शरीर को सर्वाधिक प्रभावित करते हैं अतः रंगों के माध्यम से हम अपने भावों को शुद्ध कर सकते हैं। इतना ही नहीं लेश्याओं को शुद्ध कर मन की चंचलता को एकाग्रता में बदल भी सकते हैं। लेश्या की प्रेक्षा, यानी चमकते हुए शुभ रंगों की प्रेक्षा-ध्यान करने पर आभामण्डल को शुद्ध-परिशुद्ध किया जा सकता है जिसके शुद्ध होने पर व्यक्ति के भावों, विचारों और व्यवहार में निर्मलता आने लगती है। जैसे-जैसे लेश्या

Loading...

Page Navigation
1 ... 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192