Book Title: Agam Gyan Ki Adharshila Pacchis Bol
Author(s): Varunmuni
Publisher: Padma Prakashan

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Page 153
________________ आगमज्ञान की आधारशिला : पचीस बोल * १३९ * धर्मास्तिकाय के पाँच भेद हैं(१) द्रव्य से एक, (२) क्षेत्र से लोक प्रमाण, (३) काल से आदि-अन्तरहित, (४) भाव से वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्शरहित, अरूपी, अजीव, शाश्वत, लोकव्यापी, (५) गुण से हलचल गुण। (२) अधर्मास्तिकाय (Fulcrum of Rest-फलक्रम ऑफ रेस्ट) - यह द्रव्य धर्म द्रव्य के विपरीत स्वभाव वाला द्रव्य है। इसके अन्य सभी लक्षण धर्म द्रव्य के समान हैं केवल गुणों में भिन्नता है। गुण की दृष्टि से धर्म द्रव्य जहाँ गति में आश्रयभूत है वहीं यह अधर्म द्रव्य स्थिति में आश्रयभूत है। यानी यह जीव-पुद्गल के ठहरने में सहायक है। यह भी प्रेरणात्मक नहीं है। इसको स्थिरता का माध्यम (Medium of rest-मीडियम ऑफ रेस्ट) भी कह सकते हैं। इसके अभाव में एक बार गति में आया हुआ पदार्थ कभी रुकेगा नहीं, सर्वत्र चलता रहेगा। इसी के द्वारा वैज्ञानिकों का गुरुत्वाकर्षण (Forces of gravitation-फोर्सेस ऑफ ग्रेविटेशन) व विद्युत् चुम्बकीय शक्तियाँ (Electromagnetism एलेक्ट्रोमेगनेटिज्म) काम करती हैं। इसी द्रव्य के कारण सौरमण्डल में समस्त ग्रह अवस्थित हैं। अणु में इलेक्ट्रॉन प्रोटोन से अलग नहीं होता और परमाणु का स्वरूप शाश्वत बना रहता है। यह द्रव्य अन्य पदार्थों को स्थिर रखता है, टुकड़े-टुकड़े होकर बिखरने से रोकता है। इसके भी पाँच भेद हैं (१) द्रव्य से एक, (२) क्षेत्र से लोक प्रमाण, (३) काल से आदि-अन्तरहित, (४) भाव से वर्ण, गंध, रस, स्पर्शरहित, अरूपी, अजीव, शाश्वत, लोकव्यापी, . (५) गुण से स्थिर गुण।

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