Book Title: Agam Gyan Ki Adharshila Pacchis Bol
Author(s): Varunmuni
Publisher: Padma Prakashan

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Page 161
________________ आगमज्ञान की आधारशिला : पच्चीस बोल * १४७* - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - (३) आकाशास्तिकाय, (४) काल द्रव्य, (५) पुद्गलास्तिकाय, (६) जीवास्तिकाय। इनमें पहली पाँच राशियाँ अजीव राशि कहलाती हैं और शेष एक द्रव्य, यानी जीवास्तिकाय को जीव राशि कहते हैं। इन षड्द्रव्यों के स्वरूपादि के बारे में सम्पूर्ण जानकारी होते ही हमारे मानस-पटल पर सम्पूर्ण लोक या विश्व का संस्थान उभरने लगता है। धर्मास्तिकाय और अधर्मास्तिकाय एक-दूसरे के प्रतिपक्षी हैं। धर्मास्तिकाय गतिशीलता और सक्रियता में सहायक है। विश्व में जो भी कुछ हलचल, कम्पन-प्रकम्पन तथा सूक्ष्म से सूक्ष्म स्पंदन आदि होते हैं उन सबमें धर्मास्तिकाय की ही भूमिका रहती है। इसी प्रकार अधर्मास्तिकाय है। इसका उपकार ठहरने या स्थिरता या निष्क्रियता में है। यद्यपि यह सक्रियता और निष्क्रियता पदार्थों की स्व-शक्ति का परिणाम है। किन्तु इन दोनों के सहयोग बिना ये असम्भव है। तीसरा द्रव्य आकाशास्तिकाय है। यह सभी द्रव्यों या पदार्थों का आश्रयदाता है। सम्पूर्ण लोक आकाश पर ही टिका हुआ है और आकाश स्व-प्रतिष्ठित है। चौथा द्रव्य है काल। लोक के मुख्य भाग में अढ़ाई द्वीप समस्त क्रिया-कलापों का विधिवत् संचालन काल द्रव्य से ही सम्भव है। पाँचवाँ द्रव्य है पुद्गल। पुद्गल के अभाव में जीवों का निर्वहन असम्भव है क्योंकि श्वास-प्रश्वास से लेकर सभी जैविक क्रियाओं में पौद्गलिक वस्तुएँ ही काम में आती हैं। शरीर अपने आप में पुद्गल है। मन, वचन व काय की समस्त प्रवृत्तियों के संचालन में पुद्गल ही सहायक बनते हैं। छठा द्रव्य है जीवास्तिकाय। जीव चेतनाशील होने के कारण इन षड्द्रव्यों का उपयोग करता है। इस प्रकार षड्द्रव्यों के परिज्ञान से लोक या विश्व को जाना जा सकता है क्योंकि षड्द्रव्यों का समूह ही लोक है। इनका वर्णन बीसवें बोल में किया जा चुका है। लोक स्वरूप के ज्ञान में अजीव राशि के अन्तर्गत पदार्थ या द्रव्यों का जितना सम्बन्ध है उतना कदाचित् सम्बन्ध जीव की विभिन्न दशाओं का नहीं है। आत्म-साधना या आत्म-विकास में जीवों की अवस्थाओं का विशेष महत्त्व है। जीव के आध्यात्मिक विकास में नव तत्त्वों की भूमिका अनिर्वचनीय है। ये नव तत्त्व इस प्रकार हैं

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