Book Title: Agam Gyan Ki Adharshila Pacchis Bol
Author(s): Varunmuni
Publisher: Padma Prakashan

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Page 162
________________ १४८ : इक्कीसवाँ बोल : राशि दो (१) जीव तत्त्व, (२) अजीव तत्त्व, (३) पुण्य तत्त्व, (४) पाप तत्त्व, (५) बन्ध तत्त्व, (६) आस्रव तत्त्व, (७) संवर तत्त्व, (८) निर्जरा तत्त्व, (९) मोक्ष तत्त्व | ----‒‒‒‒‒‒‒‒‒‒ इनमें जीव और अजीव ही प्रमुख हैं। पुण्य, पाप और बंध के द्वारा आत्मा बँधती है। पुण्य से सुख और पाप से दुःख मिलते हैं। आस्रव कर्मद्वार है, संवर कर्मों को रोकता है, निर्जरा बँधे हुए कर्मों को नष्ट करती है। समस्त कर्मों से मुक्त होने पर आत्मा निर्विकार, कर्ममलरहित परम शुद्धावस्था में पहुँच जाती है। इस प्रकार चार तत्त्व - पुण्य, पाप, बंध और आस्रव - मोक्ष में बाधक हैं और संवर और निर्जरा मोक्ष के साधक हैं। इन नव तत्त्वों में पुण्य, पाप, बंध, अजीव ये चार तत्त्व अजीव राशि में और संवर, निर्जरा, मोक्ष और जीव ये तत्त्व जीव राशि में रखे गए हैं। षड्द्रव्यों में और नव तत्त्वों में जो विशेषता है वह यह है कि षड्द्रव्यों में जीव राशि का कोई विभाग नहीं है जबकि नव तत्त्वों में जीव राशि के पाँच विभाग हैं। इसी प्रकार षड्द्रव्यों में पाँच द्रव्य अजीव के कहे गए हैं और नव तत्त्वों में केवल चार तत्त्व ही अजीव के हैं। इस बात को हम निम्न समीकरण से समझ सकते हैं। यथा षड्द्रव्य : = एक जीव राशि + पाँच अजीव राशि नव तत्त्व = पाँच जीव राशि + चार अजीव राशि इससे यही सिद्ध होता है कि सम्पूर्ण लोक में दो ही राशियाँ व्याप्त हैं- एक जीव राशि और दूसरी अजीव राशि | विभिन्न दृष्टियों से जैनागम में जीव राशि के कुल ५६३ भेद और अजीव राशि के ५६० भेद किए गए हैं। जीव राशि जीव में, साधु में, श्रावक में, सर्वसंसारी जीवों में, लोक में, षड्द्रव्यों में तथा अजीव राशि अजीव में पायी जाती है। ( आधार: समवायांग, सूत्र २)

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