Book Title: Agam Gyan Ki Adharshila Pacchis Bol
Author(s): Varunmuni
Publisher: Padma Prakashan

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Page 170
________________ *१५६ * बाईसवाँ बोल : श्रावक के बारह व्रत (१) मकानों, दुकानों तथा खेतों की मर्यादा को किसी भी बहाने से बढ़ाना, (२) स्वर्ण, चाँदी आदि के परिमाण को भंग करना, (३) द्विपद, यानी नौकर आदि, चतुष्पद, यानी गाय, घोड़ा आदि के परिमाण का उल्लंघन करना, (४) मुद्रा, जवाहरात आदि की मर्यादा को भंग करना, (५) दैनिक व्यवहार में आने वाले वस्त्र, पात्र, आसन आदि पदार्थों के लिए परिमाण का उल्लंघन करना। तीन गुणव्रत अहिंसादि पंचाणुव्रतों को पुष्ट करने वाले और उनमें अभिवृद्धि तथा रक्षा करने वाले व्रत उत्तर व्रत कहलाते हैं। इनके दो भेद हैं-एक गुणव्रत और दूसरा शिक्षाव्रत। श्रावक इन व्रतों को यावत् जीवन ग्रहण करता है। गुणव्रत तीन प्रकार के कहे गए हैं (१) दिशा परिमाण व्रत, (२) भोगोपभोग परिमाण व्रत, (३) अनर्थदण्ड विरमण व्रत। (१) दिशा परिमाण व्रत दिशाएँ दस प्रकार की होती हैं। यानी चार दिशा, चार विदिशा, एक ऊर्ध्व दिशा और एक अधो दिशा। इस प्रकार इस गुणव्रत के द्वारा इन सभी दिशाओं का परिमाण निर्धारित कर अपने व्यापार आदि सावध कार्य के लिए गमनागमन करता है, यानी आने-जाने की सीमा निर्धारित करता है। इस व्रत में क्षेत्र की मर्यादा रखी जाती है। जैसे-अमुक दिशा में इतनी दूरी से अधिक गमनागमन नहीं करूँगा। वर्तमान काल में इस व्रत का महत्त्व अत्यधिक है। सभी राष्ट्र अपनी राजनीतिक और आर्थिक सीमाएँ निश्चित कर लें तो बहुत से संघर्ष स्वतः समाप्त हो सकते हैं। इस व्रत से समाज में शोषण व आक्रमण-जैसी प्रवृत्तियों का नाश हो सकता है। (२) भोगोपभोग परिमाण व्रत भोग का अर्थ है एक बार भोग के काम में आने वाली खाद्यादि वस्तुएँ, जैसे-जल, अन्नादि और उपभोग का अर्थ है बार-बार भोग के काम में आने

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