Book Title: Agam Gyan Ki Adharshila Pacchis Bol
Author(s): Varunmuni
Publisher: Padma Prakashan

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Page 168
________________ * १५४ * बाईसवाँ बोल : श्रावक के बारह व्रत (३) अस्तेयाणुव्रत तीसरा अणुव्रत है अस्तेयाणुव्रत । इसे स्थूल अदत्तादान विरमण व्रत भी कहते हैं | श्रावक के लिए यह सम्भव नहीं है कि वह सम्पूर्ण प्रकार से चोरी का परित्याग करे | वह केवल स्थूल रूप से ही इस व्रत को अंगीकार कर सकता है। वह यह संकल्प ले सकता है कि सचित्त - अचित्त कैसी भी वस्तु हो, उसके अधिकार में हो या दूसरे के अधिकार क्षेत्र में हो वह अनध्यवसायपूर्वक उस वस्तु को बिना मालिक के पूछे ग्रहण नहीं करेगा, ऐसा अस्तेय अणुव्रत कहलाता है । जो वस्तु अपनी नहीं है उस वस्तु का उपभोग न करना एक प्रकार से अस्तेय अणुव्रत है। यानी इसे हम इस तरह समझ सकते हैं कि कोई भी श्रावक डाका, राहजनी से ताला तोड़कर, लूट-खसोटकर या अन्य हिंसात्मक तरीकों से बड़ी चोरी करने का त्याग करता है उसका यह त्याग अस्तेय अणुव्रत कहलाता है। जिस चोरी से राजदण्ड मिलता हो, अपयश - अपमान मिलता हो, निंदा होती हो, वह कार्य घृणित है और ऐसी चुराई हुई वस्तु का ग्रहण करना हितकारी नहीं है। ऐसा करने से श्रावक अस्तेयव्रत को भंग करता है । यह भी अन्य अणुव्रतों की तरह तीन योग व दो करणपूर्वक होता है। स्थूल चोरी का परित्याग करने वाले का जीवन व्यावहारिक दृष्टि से और भी अधिक विश्वस्त तथा प्रामाणिक बन जाता है। चोरी एक प्रकार का व्यसन है । सामाजिक उन्नति और स्थायी शान्ति के लिए इस व्यसन का त्याग अपेक्षित है अतः अस्तेयाणुव्रत राष्ट्रीय व सामाजिक स्तर पर अत्यन्त उपयोगी है। प्रत्येक श्रावक को इस व्रत की सुरक्षा के लिए निम्न पाँच दोषों से बचना चाहिए ------------ (१) चोरी का माल खरीदना, (२) चोर को चोरी करने में सहयोग देना, (३) राज्य - राष्ट्र के विरुद्ध कार्य करना, जैसे- उचित कर आदि न देना, (४) न्यूनाधिक नाप-तोल करना, (५) मिलावट करके अशुद्ध पदार्थ बेचना । (४) ब्रह्मचर्याणुव्रत चौथा अणुव्रत ब्रह्मचर्य अणुव्रत । वेश्यागमन व पर-स्त्रीगमन इन दो व्यसनों का त्याग तथा अपनी स्त्री के साथ मर्यादापूर्वक ब्रह्मचर्य का पालन ब्रह्मचर्य अणुव्रत कहलाता है । इसी प्रकार स्त्री का पर-पुरुष के साथ सम्बन्ध

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