Book Title: Agam Gyan Ki Adharshila Pacchis Bol
Author(s): Varunmuni
Publisher: Padma Prakashan

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Page 176
________________ *१६२ * तेईसवाँ बोल : साधु के पाँच महाव्रत -------------------------------------------------- (२) सत्य महाव्रत, (३) अस्तेय महाव्रत, (४) ब्रह्मचर्य महाव्रत, (५) अपरिग्रह महाव्रत। (१) अहिंसा महाव्रत प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से जीव हिंसा का सर्वथा त्याग अहिंसा महाव्रत है। अहिंसक साधु स्थूल व सूक्ष्म हिंसा से बचने के लिए अपने लिए भोजन भी, जो जीवन के लिए मूलभूत आवश्यकता है, न तो स्वयं बनाता है और न दूसरों से बनवाता है। वह हिंसाजनित पदार्थों का उपयोग भी नहीं करता है। गृहस्थ स्वेच्छा से जब तक साधु को निरवद्य भावनाओं से शुद्ध भोजन नहीं देता, साधु उस भोजन को नहीं लेता है। श्रमण साधु के लिए दोनों प्रकार की हिंसा-स्थूल और सूक्ष्म सर्वथा त्याज्य हैं। साधु पाँच समितियों व तीन गुप्तियों अर्थात् अष्ट प्रवचन माता के साथ अपने जीवन का निर्वहन करते हैं। श्रमण साधु जीवों की हिंसा न होने पाए इसके लिए रजोहरण का उपयोग करते हैं। सो किसी मिट्टी को स्पर्श तक नहीं करते हैं जिसमें जीव हों। मिट्टी जब तक किसी विरोधी द्रव्य के संयोग से जीवरहित न हो गयी हो, तब तक वे मिट्टी को ग्रहण नहीं करते हैं। साधु कुएँ का जल, नदी, तालाब व वर्षा आदि का जल, जो जीव सहित होता है, कच्चा या सचित्त होता है, को भी ग्रहण नहीं करते हैं। वे सदा प्रासुक और छने हुए जल का ही उपयोग करते हैं। श्रमण साधु अग्नि को भी स्पर्श नहीं करते हैं क्योंकि इसमें अग्निकाय जीव होते हैं। इसी प्रकार हरी वनस्पतियाँ जिसमें सचित्तता हो उसका भी प्रयोग नहीं करते हैं, जब तक वनस्पतियाँ अग्नि या विरोधी द्रव्यों के संयोग से अचित्त या जीवरहित नहीं हो जातीं। __ जैनागम में अहिंसाव्रत के लिए कहा गया है कि श्रमण साधु पृथ्वी को न कुरेदे और न उसका भेदन करे। सचित्त मिट्टी, क्षार, हरिताल, हिंगुल आदि से लिप्त हाथ व चम्मच से भिक्षा न ले। सचित्त पृथ्वी और मिट्टी के रजकणों से सने हुए आसन पर न बैठे। मल, मूत्र, श्लेष्म आदि का उत्सर्ग भी अचित्त पृथ्वी पर करे। पृथ्वीकाय की किसी भी प्रकार की हिंसा न करे। __ श्रमण साधु किसी की भावनाओं को आहत नहीं करते हैं। दुष्ट से दुष्ट प्रकृति के मनुष्यों या हिंसक जीव-जन्तुओं के आक्रमण का न तो प्रतिरोध करते हैं और न प्रतिशोध लेते हैं, अपितु शान्तिपूर्वक सहिष्णु बने रहते हैं। वे

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