Book Title: Agam Gyan Ki Adharshila Pacchis Bol
Author(s): Varunmuni
Publisher: Padma Prakashan

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Page 190
________________ * १७६ * पच्चीसवाँ बोल : चारित्र पाँच इन पाँचों चारित्रों में कौन-सा और कितने प्रकार का चारित्र वहाँ पर पाया जाता है। इसका भी उल्लेख जैनागम में हुआ है । यथाख्यात चारित्र ग्यारहवें से चौदहवें गुणस्थान में होता है। सामायिक और छेदोपस्थापन चारित्र शुक्लध्यान में, पंचम काल में तथा छठे से चौदहवें गुणस्थानों में होता है। सामायिक, छेदोपस्थापन तथा परिहार विशुद्धि चारित्र छठे व सातवें गुणस्थानों में तथा दूसरे तीर्थंकर भगवान अजितनाथ से लेकर तेईसवें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ के शासन में पाए जाते हैं । सामायिक, छेदोपस्थापन, परिहार विशुद्धि व सूक्ष्म संपराय-ये चार चारित्र कषाय कुशील निर्ग्रन्थों में पाए जाते हैं और पाँचों चारित्र के लिए कहा गया है कि ये महाविदेह क्षेत्र में, संयती में, सम्यक् · दृष्टि में, चतुर्थ काल में, ढाई द्वीप में तथा तीन प्रशस्त - तेजो, पद्म व शुक्ल लेश्याओं में पाए जाते हैं । ( आधार : स्थानांग, स्थान ५ ) प्रश्नावली १. चारित्र से क्या तात्पर्य है? इसके स्वरूप पर प्रकाश डालिए । २. चारित्र के भेदों का नामोल्लेख कीजिए। ये भेद किस अपेक्षा से हैं? ३. सामायिक चारित्र से आप क्या समझते हैं? ये शेष चारों चारित्रों से किस प्रकार से भिन्न हैं? ४. 'बड़ी दीक्षा' जिस चारित्र के अन्तर्गत आती है उसके स्वरूप पर संक्षेप में प्रकाश डालिए तथा सामायिक चारित्र से इसकी तुलना कीजिए । ५. परिहार विशुद्धि चारित्र को समझाते हुए उसकी साधना विधि बताइए । ६. दसवें गुणस्थान वाले चारित्र के बारे में बताइए । ७. केवली भगवान में कौन - सा चारित्र होता है? उस चारित्र की विशेषताएँ बताइए | ८. कौन - सा चारित्र कहाँ पाया जाता है? इसका उल्लेख कीजिए ।

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