Book Title: Agam Gyan Ki Adharshila Pacchis Bol
Author(s): Varunmuni
Publisher: Padma Prakashan

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Page 131
________________ आगमज्ञान की आधारशिला : पच्चीस बोल *११७* - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - में इसकी मनोवृत्ति कुछ शुभ होती है किन्तु ऐसा लेश्यायी जीव प्रमादी, मन्द बुद्धि, कामुक-लोलुप, मायावी, भयभीत, घमण्डी, ईर्ष्यालु, निर्लज्ज, हिंसक व क्षुद्र होता है। वह पौद्गलिक सुखों की प्राप्ति में ही लगा रहता है। (३) कापोत लेश्या . इसका वर्ण अलसी के पुष्प, कोयल के पंख और कबूतर की ग्रीवा के समान कत्थई होता है। ऐसे जीव का स्वभाव दाड़िम-जैसा होता है। गंध दुर्गन्ध और कर्कश स्पर्श होता है। ऐसे जीव मन, वचन व काय से वक्र होते हैं। मिथ्या दृष्टि होते हैं। अपने दोषों पर परदा डाले रखते हैं। शोक में डूबे रहते हैं। क्रोधी स्वभाव के होते हैं। पर-निन्दा व स्व-प्रशंसा में इनकी रुचि रहती है। अप्रिय और कठोर वाणी का व्यवहार करते हैं। अपने स्वार्थ के लिए पशुओं का संरक्षण भी करते हैं। . (४) तेजोलेश्या - इसका वर्ण हिंगुल, गेरू, नवोदित सूर्य, तोते की चोंच, लौ के समान रक्त वाला होता है। पके हुए आम की तरह का ऐसे जीवों का स्वभाव होता है। तेजोलेश्या वाला जीव धर्म में रुचि रखता है। मोह-ममता से दूर रहने का प्रयास करता है। ऐसा जीव पवित्र, विनयी, दयालु, करुणाशील, कर्त्तव्यपरायण, इन्द्रियजयी, पापकर्मों से डरने वाला, आत्म-साधना की ओर सदा प्रवृत्त रहने वाला होता है। यह दूसरों के प्रति उदारमना होता है। अपने सुख के साथ-साथ दूसरे के सुख की भी कामना करता है। ऐसा जीव लाभ-अलाभ में सदा प्रसन्न व सम रहता है। (५) पद्म लेश्या इसका वर्ण हरिताल, हल्दी के टुकड़े तथा सण और असन के पुष्प के समान पीला होता है। इक्षु रस का आस्वाद ऐसे जीवों का होता है। क्रोध न करना, मितभाषी होना, इन्द्रिय-विजय करना आदि इस लेश्या के परिणाम हैं। इस लेश्या वाले जीव की मनोवृत्ति धर्मध्यान व शुक्लध्यान में ही रहती है। ऐसा जीव उत्कृष्ट कोटि का संयमी साधक व सौम्य प्रकृति वाला होता है। देव व गुरु की भक्ति में लीन रहने वाला तथा क्षमा धर्म से युक्त रहता है। वह सदा प्रमुदित व प्रफुल्लित रहता है।

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