Book Title: Agam 44 Nandi Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

View full book text
Previous | Next

Page 8
________________ आगम सूत्र ४४, चूलिकासूत्र-१, 'नन्दीसूत्र' अभिवृद्धि करनेवाले, सभी प्राणियों को उपदेश देने में निपुण और भव-भीति के विनाशक नागार्जुन ऋषि के शिष्य भूतदिन्न को मैं वन्दन करता हूँ। सूत्र - ४२ नित्यानित्य रूप से द्रव्यों को समीचीन रूप से जानने वाले, सम्यक् प्रकार से समझे हुए सूत्र और अर्थ के धारक तथा सर्वज्ञ-प्ररूपित सद्भावों का यथाविधि प्रतिपादन करने वाले लोहित्याचार्य को नमस्कार करता हूँ। सूत्र-४३ शास्त्रों के अर्थ और महार्थ की खान के सदृश सुसाधुओं को आगमों की वाचना देते समय संतो, व समाधि का अनुभव करनेवाले, प्रकृति से मधुर, श्री दूष्यगणी को सम्मानपूर्वक वन्दन करता हूँ। सूत्र - ४४ प्रशस्त लक्षणों से सम्पन्न, सुकुमार, सुन्दर तलवे वाले और सैकड़ों प्रातच्छिकों द्वारा नमस्कृत, प्रवचनकार श्री दूष्यगणि के पूज्य चरणों को प्रणाम करता हूँ। सूत्र - ४५ इस अनुयोगधर स्थविरों और आचार्यों से अतिरिक्त अन्य जो भी कालिक सूत्रों के ज्ञाता और अनुयोगधर धीर आचार्य भगवन्त हुए हैं, उन सभी को प्रणाम करके (मैं देव वाचक) ज्ञान की प्ररूपणा करूँगा। सूत्र - ४६ शेलघन-कुटक, चालनी, परिपूर्णक, हंस, महिष, मेष, मशक, जौंक, बिल्ली, जाहक, गौ, भेरी और आभीरी इनके समान श्रोताजन होते हैं। सूत्र-४७ वह श्रोतासमूह तीन प्रकार का है । विज्ञपरिषद्, अविज्ञपरिषद् और दुर्विदग्ध परिषद् । उनमें विज्ञ-परिषद् इस प्रकार से है - सूत्र - ४८ जैसे उत्तम जाति के राजहंस पानी को छोड़कर दूध का पान करते हैं, वैसे ही गुणसम्पन्न श्रोता दोषों को छोड़कर गुणों को ग्रहण करते हैं । हे शिष्य ! इसे ही ज्ञायिका परिषद् समझना । सूत्र -४९ अज्ञायिका परिषद् इस प्रकार हैसूत्र-५० जो श्रोता मृग, शेर और कुक्कुट के अबोध शिशुओं के सदृश स्वभाव से मधुर, भद्रहृदय होते हैं, उन्हें जैसी शिक्षा दी जाए वे उसे ग्रहण कर लेते हैं । वे असंस्कृत होते हैं। रत्नों को चाहे जैसा बनाया जा सकता है। ऐसे ही अनभिज्ञ श्रोताओं में यथेष्ट संस्कार डाले जा सकते हैं। हे शिष्य ! ऐसे अबोध जनों के समूह को अज्ञायिका परिषद् जानो । सूत्र -५१ दुर्विदग्धा परिषद् का लक्षणसूत्र-५२ ___ अल्पज्ञ पंडित ज्ञान में अपूर्ण होता है, किन्तु अपमान के भय से किसी विद्वान् से कुछ पूछता नहीं । फिर भी अपनी प्रशंसा सुनकर मिथ्याभिमान से वस्ति की तरह फूला हुआ रहता है । ऐसे लोगों की सभा को, हे शिष्य ! दुर्विदग्धा सभा समझना । मुनि दीपरत्नसागर कृत्-(नन्दी) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद" Page 8

Loading...

Page Navigation
1 ... 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28