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आगम सूत्र ४४, चूलिकासूत्र-१, 'नन्दीसूत्र' सत्र-८१
भन्ते ! मनःपर्यवज्ञान का स्वरूप क्या है ? यह ज्ञान मनुष्यों को उत्पन्न होता है या अमनुष्यों को?
हे गौतम ! मनः-पर्यवज्ञान मनुष्यों को ही उत्पन्न होता है, अमनुष्यों को नहीं । यदि मनुष्यों को उत्पन्न होता है तो क्या संमूर्छिम को या गर्भव्युत्क्रान्तिक को ? गौतम ! वह गर्भव्युत्क्रान्तिक मनुष्यों को ही उत्पन्न होता है । यदि गर्भज मनुष्यों को मनःपर्यवज्ञान होता है तो क्या कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों को होता है, अकर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों को होता है या अन्तरद्वीपज गर्भज मनुष्यों को होता है? गौतम ! कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों को ही होता है
यदि कर्मभूमिज मनुष्यों को मनःपर्यवज्ञान उत्पन्न होता है तो क्या संख्यात वर्ष की अथवा असंख्यात वर्ष की आयु प्राप्त कर्मभूमिज मनुष्यों को होता है ? गौतम ! संख्यात वर्ष की आयु वाले गर्भज मनुष्यों को ही उत्पन्न होता है । यदि संख्यातवर्ष की आयुवाले कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों को होता है तो क्या पर्याप्त को या अपर्याप्तसंख्यात वर्ष की आयुवाले को होता है ? गौतम ! पर्याप्त संख्यात वर्ष की आयुवाले कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों को ही होता है।
यदि मनःपर्यवज्ञान पर्याप्त, संख्यात वर्ष की आयु वाले, कर्मभूमिज, गर्भज मनुष्यों को होता है तो क्या वह सम्यक्दृष्टि या मिथ्यादृष्टि अथवा मिश्रदृष्टि पर्याप्त संख्येय वर्ष की आयु वाले कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों को उत्पन्न होता है ? सम्यग्दृष्टि पर्याप्त संख्यात वर्ष की आयु वाले कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों को ही होता है।
-यदि सम्यग्दृष्टि पर्याप्त, संख्यातवर्ष की आयु वाले कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों को होता है, तो क्या संयत० को होता है, अथवा असंयत० को या संयतासंयत-सम्यग्दृष्टि पर्याप्त संख्यात वर्ष की आयु वाले कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों को होता है ? गौतम ! संयत सम्यग्दृष्टि पर्याप्त संख्यात वर्ष की आयु वाले कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों को ही उत्पन्न होता है । यदि संयत सम्यग्दृष्टि पर्याप्त संख्यात वर्ष की आयु वाले कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों को उत्पन्न होता है तो क्या प्रमत्त संयत० को होता है या अप्रमत्त संयत सम्यग्दृष्टि पर्याप्त संख्यातवर्षायुष्क को? गौतम ! अप्रमत्त संयत सम्यग्दृष्टि पर्याप्तक संख्यातवर्ष की आयुवाले कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों को ही होता है।
-यदि अप्रमत्तसंयत सम्यग्दृष्टि पर्याप्त संख्यात वर्ष की आयु वाले, कर्मभूभिज गर्भज मनुष्यों को मनःपर्यवज्ञान उत्पन्न होता है तो क्या ऋद्धिप्राप्त० को होता है अथवा लब्धिरहित अप्रमत्त संयत सम्यग्दृष्टि पर्याप्त संख्यात वर्ष की आयु वाले को होता है ? गौतम ! ऋद्धिप्राप्त अप्रमाद सम्यग्दृष्टि पर्याप्त संख्यात वर्ष की आयु वाले कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों को ही मनःपर्यवज्ञान की प्राप्ति होती है। सूत्र-८२
मनःपर्यवज्ञान दो प्रकार से उत्पन्न होता है । ऋजुमति, विपुलमति । यह संक्षेप से चार प्रकार से है । द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से, भाव से।
द्रव्य से-ऋजुमति अनन्त अनन्तप्रदेशिक स्कन्धों को जानता व देखता है, और विपुलमति उन्हीं स्कन्धों को कुछ अधिक विपुल, विशुद्ध और निर्मल रूप से जानता व देखता है।
क्षेत्र से-ऋजुमति जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग मात्र क्षेत्र को तथा उत्कर्ष से नीचे, इस रत्नप्रभा पृथ्वी के उपरितन-अधस्तन क्षुल्लक प्रतर को और ऊंचे ज्योतिषचक्र के उपरितल को और तिरछे लोक में मनुष्य क्षेत्र के अन्दर अढाई द्वीप समुद्र पर्वत, पन्द्रह कर्मभूमियों, तीस अकर्मभूमियों और छप्पन अन्तरद्वीपों में वर्तमान संज्ञिपंचेन्द्रिय पर्याप्त जीवों के मनोगत भावों को जानता व देखता है । और उन्हीं भावों को विपुलमति अढ़ाई अंगुल अधिक विपुल, विशुद्ध और तिमिररहित क्षेत्र को जानता व देखता है।
काल से-ऋजुमति जघन्य और उत्कृष्ट भी पल्योपम के असंख्यातवें भाग भूत और भविष्यत् काल को जानता व देखता है । उसी काल को विपुलमति उससे कुछ अधिक, विपुल, विशुद्ध, वितिमिर जानता व देखता है
भाव से-ऋजुमति अनन्त भावों को जानता व देखता है, परन्तु सब भावों के अनन्तवें भाग को ही जानता
मुनि दीपरत्नसागर कृत् (नन्दी) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद"
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